कतको दीवाना हे (छत्तीसगढ़ी गजल)

कतको दीवाना हे (छत्तीसगढ़ी गजल)

किस्मत के सितारा हा चमक जाही लगत हे ।
मन तोर दीवाना हे भटक जाही लगत हे ।।

खुशबू ले भरे तन मा रथे मन घलो सुंदर
तोर तीर जमाना ये जटक जाही लगत हे ।

कतको दीवाना हे अउ कतको अभी होही
कतको इहाँ फाँसी मा लटक जाही लगत हे ।

अब रोज नियम बनथे जाबे जे शहर मा
आगू जब तैं आये भसक जाही लगत हे ।

वादा तैं करे रोज मिले बर हे अकेला
मौका जे मिले आज बिचक जाही लगत हे ।

मन आज दरस माँगे नवा रोग लगे हे
तोला देख सबो रोग दबक जाही लगत हे ।

अब तोर भरोसा के इहाँ जरूरत हे मोला
डोंगा ये भँवर बीच अटक जाही लगत हे ।

ये ताजमहल मोर बनन दे ऐ मुदिता
सब तोर बिना जोड़ी धसक जाही लगत हे ।

माधुरी डड़सेना ” मुदिता “

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