समझाये सबो मोला (छत्तीसगढ़ी गजल)

पगला कहे दुनिया समझाये सबो मोला ।
का तोर मया हे दिखलाये सबो मोला ।।

मन मोर भरम जाये वो ही गोठ ला करथें
दुरिहा चले जावों भरमाये सबो मोला ।

मँगनी के मया नोहे मया हावे जनम के
निंदा करें सब झन बिचकाये सबो मोला ।

कइसे तोला छोड़ँव मर जाहूँ लगे अइसे
अर्थी मा मढ़ाये अलगाये सबो मोला ।

अब तोर बिना सपना सबो अँगरा लगे हे
सपना मोला खोजे दँवलाये सबो मोला ।

गुन गुन के परेशान करे मोर जँवारा
काँटा के बिछौना घिरलाये सबो मोला ।

का नाम धरे हस तै बता दे ये मयारू
चिनहा बता अब तो मँगवाये सबो मोला ।

कोशिश करे दुनिया मर जाये अब मुदिता
दिन रात हे पाछू सुलगाये सबो मोला ।

*माधुरी डड़सेना"मुदिता"*

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