कौन हो तुम?-डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा

कौन हो तुम?

शब्दों के चित्र,
कोरे कागज़ पर,
स्याही उड़ेलकर,
कलम को कूची बनाकर,
कविता की सूरत,
बला की खूबसूरत!
कैनवास पर,
भावों का समर्पण कर
उकेर देते हो!
कौन हो तुम?
कवि या कोई चित्रकार?
छेनी-हथोड़े की तरह,
औजार बनाकर,
तराशी उंगलियों से,
गढ़ते हो..
पत्थर की मूरत,
बला की खूबसूरत!
फिर–
फूंक देते हो प्राण,
साँसों को अर्पण कर
कौन हो तुम?
कवि या कोई शिल्पकार?
कौन हो तुम……
—-डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’
अम्बिकापुर(छ. ग.)

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