घर-बेघर पर कविता

घर-बेघर पर कविता

सरकार का आदेश है
आज मुझे
और बाकी सब को भी
घर पर रहना है
मैं और बाकी सब
हर संभव प्रयास करके
घर पर ही रहेंगे
लेकिन सरकार
यह बताना भूल गई
कहाँ रहेंगे
नगरों-महानगरों के बेघर
जिनका धरती बिछौना
आसमान ओढ़ना है
जो करते हैं विचरण
सरकारों के
मुख्यालयों की नाक के नीचे
कहाँ रहेंगे वे खानाबदोश
जो स्वयं के
व पशुओं के
भोजन की तलाश में
घूमते हैं
एक गांव से दूसरे गांव
वे कहाँ रहेंगे
या शिकार होंगे
घातक वायरस के

-विनोद सिल्ला

You might also like