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खुशनसीब -माधुरी डड़सेना मुदिता

कविता संग्रह
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खुशनसीब


मैं खुशनसीब हूँ कि मुझे यार मिल गया
दिल को बड़ा सकूं है दिलदार मिल गया ।

दर दर भटक रहे थे कभी हम यहाँ वहाँ
अब डर नहीं किसी से सरकार मिल गया ।

हमराज बन गए हैं दिन रात अब नया
रंगत बहार में है इतबार मिल गया ।

दुनिया बड़ी ही जालिम जीने कहाँ वो दे
सारे सितम मिटे अभी यलगार मिल गया ।

कश्ती फँसी भँवर में किनारे सभी थे गुम
तुम जो मिले जहान में पतवार मिल गया ।

कोई बहार आये तमन्ना लिए हुए
अब खलवते हयात को इकरार मिल गया ।

बनके मिसाल तुम तो हमारे करीब हो
सबसे बड़े मुकाम का किरदार मिल गया ।

जिनको तलाशते थे हजारों की भीड़ में
मुदिता मेरे नसीब को आकार मिल गया ।


*माधुरी डड़सेना ” मुदिता “

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