खुशनसीब
मैं खुशनसीब हूँ कि मुझे यार मिल गया
दिल को बड़ा सकूं है दिलदार मिल गया ।
दर दर भटक रहे थे कभी हम यहाँ वहाँ
अब डर नहीं किसी से सरकार मिल गया ।
हमराज बन गए हैं दिन रात अब नया
रंगत बहार में है इतबार मिल गया ।
दुनिया बड़ी ही जालिम जीने कहाँ वो दे
सारे सितम मिटे अभी यलगार मिल गया ।
कश्ती फँसी भँवर में किनारे सभी थे गुम
तुम जो मिले जहान में पतवार मिल गया ।
कोई बहार आये तमन्ना लिए हुए
अब खलवते हयात को इकरार मिल गया ।
बनके मिसाल तुम तो हमारे करीब हो
सबसे बड़े मुकाम का किरदार मिल गया ।
जिनको तलाशते थे हजारों की भीड़ में
मुदिता मेरे नसीब को आकार मिल गया ।
*माधुरी डड़सेना ” मुदिता “