लावणी/कुकुभ/ताटंक छंद [सम मात्रिक] विधान – 30 मात्रा, 16,14 पर यति l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l
विशेष – इसके चरणान्त में वर्णिक भार 222 या गागागा अनिवार्य होने पर ताटंक , 22 या गागा होने पर कुकुभ और कोई ऐसा प्रतिबन्ध न होने पर यह लावणी छंद कहलाता है l
उदाहरण :
तिनके-तिनके बीन-बीन जब, पर्ण कुटी बन पायेगी,
तो छल से कोई सूर्पणखा, आग लगाने आयेगी।
काम अनल चन्दन करने का, संयम बल रखना होगा,
सीता सी वामा चाहो तो, राम तुम्हें बनना होगा।
– ओम नीरव
विशेष : इस छंद की मापनी को भी इसप्रकार लिखा जाता है –
22 22 22 22, 22 22 22 2
गागा गागा गागा गागा, गागा गागा गागा गा
फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन, फैलुन फैलुन फैलुन अल
किन्तु केवल गुरु स्वरों से बनने वाली इसप्रकार की मापनी द्वारा एक से अधिक लय बन सकती है तथा इसमें स्वरक(रुक्न) 121 को 22 मानना पड़ता है जो मापनी की मूल अवधारणा के विरुद्ध है l इसलिए यह मापनी मान्य नहीं है , यह मनगढ़ंत मापनी है l फलतः यह छंद मापनीमुक्त ही मानना उचित है l