लोकतंत्र की हत्या

लोकतंत्र की हत्या

आज भी सजा था मंच
सामने थे बैठे
असंख्य श्रद्धालु
गूंज रही थीं
मधुर स्वर लहरियाँ
भजनों की
आज के सतसंग में
आया हुआ था
एक बड़ा नेता
प्रबंधक लगे थे
तौल-मौल में
प्रवचन थे वही पुराने
कहा गया ‘हम हैं संत’
संतों ने क्या लेना
राजनीति से
समस्त श्रद्धालुओं ने
किया एक तरफा मतदान
तब उस मठाधीश को
कितने मामलों में
मिला जीवनदान
भले ही हो गई
लोकतंत्र की हत्या
-विनोद सिल्ला©
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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