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मातृभूमि वंदना

ताटंक छंद
विधान- १६,१४ मात्रा प्रति चरण
चार चरण दो दो चरण समतुकांत
चरणांत मगण (२२२)

मातृभूमि वंदना

वंदन करलो मातृभूमि को,
पदवंदन निज माता का।
दैव देश का कर अभिनंदन,
वंदन जीवन दाता का।
सैनिक हित जय जवान कहें हम,
नमन शहीद, सुमाता को।
जयकिसान हम कहे साथियों,
अपने अन्न प्रदाता को।

विकसित देश बनाना है अब,
जय विज्ञान बताओ तो।
लेखक शिक्षक कविजन अपने,
सबका मान बढ़ाओ तो।
लोकतंत्र का मान बढ़ाना,
भारत के मतदाता का।
संविधान का पालन करना,
जन गण मन सुख दाता का।

वंदन श्रम मजदूरों का तो,
हम सब के हितकारी हो।
मातृशक्ति को वंदन करना,
मानव मंगलकारी हो।
देश धरा हित प्राण निछावर,
करने वाले वीरों का।
आजादी हित मिटे हजारों
भारत के रण धीरों का।

प्यारे उन के परिजन को भी,
वंदित धीरज दे देना।
नीलगगन जो बने सितारे,
आशीषें कुछ ले लेना।
भूल न जाना वंदन करना,
सच्चे स्वाभिमानी का।
नव पीढ़ी को सिखा रहे उन,
देश भक्ति अरमानी का।

वंदन करलो पर्वत हिमगिरि,
सागर,पहरेदारों का।
देश धर्म हित प्रणधारे उन,
आकाशी ध्रुव तारों का।
जन गण मन में उमड़ रही जो,
बलिदानी परिपाटी का।
कण कण भरी शौर्य गाथा,
भारत चंदन माटी का।

ग्वाल बाल संग वंदन करना
अपने सब वन वृक्षों का।
वंदन भाग्य विधायक संसद
नेता पक्ष विपक्षों का।
भूले बिसरे कवि के मन से,
वंदन उन सबका भी हो।
अभिनंदन की इस श्रेणी में,
हर वंचित तबका भी हो।
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बाबू लाल शर्मा, बौहरा , विज्ञ

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