मदिरा मंंदिर एक सा- रामनाथ साहू ” ननकी “

मदिरा मंंदिर एक सा


मदिरा का पर्याय है , माधव मोहन प्यार ।
कभी कहीं उतरे नहीं , छके भरे रससार ।।
छके भरे रससार , प्रेमरस पीले पगले ।
क्या जाने कल वक्त , मिले या आगे अगले ।।
कह ननकी कवि तुच्छ , पिया था जिसे कबिरा ।
मदिरालय मन मस्त , पिये जा माधव मदिरा ।।


मदिरा पीकर कह दिया , उसने सच्ची बात ।
मौन खड़े हैं अब सभी , नैन अश्रु बरसात ।।
नैन अश्रु बरसात , दर्द से रिश्ता गहरा।
विकल रहे दिन रैन , सदन पर गम है पसरा ।।
कह ननकी कवि तुच्छ , सत्य की बहती सुषिरा ।
गलती होती माफ , खोल दी बातें मदिरा ।।


मदिरा मंंदिर एक सा , एक राशि गुण भिन्न ।
एक मनस को शांति दे , करता कोई खिन्न ।।
करता कोई खिन्न , मार्ग से है भटकाता ।
मिले कही सद्मार्ग , पथिक बन मोक्ष लुटाता ।।
कह ननकी कवि तुच्छ , मतौना दोनो रुचिरा ।
जुड़े मान अपमान , चुनो अब मंदिर मदिरा ।।


—— रामनाथ साहू ” ननकी “
मुरलीडीह

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