मेला पर बाल कविता

मेला पर बाल कविता

कविता 1



काले बादल, काले बादल।
मत पानी बरसाओ बादल ॥

मुझे देखने मेला जाना ।
यहाँ नहीं पानी बरसाना।

मेले से जब घर आ जाऊँ।
तुमको सारा हाल सुनाऊँ।

तब चुपके से गाँव में आता।
छम-छम कर पानी बरसाना ।।

कविता 2

जब जब भी है आता मेला
हमको खूब लुभाता मेला,
इसे देख मन खुश हो जाता
नई उमंगें लाता मेला।

दृश्य कई भाते मेले में
चीज कई खाते मेले में,
झुंड बना ग्रामीण लोग तो
गीत कई गाते मेले में।

मेले में हैं चकरी झूले
बच्चे फिरते फूले – फूले,
रंग – बिरंगी इस दुनिया में
आ सब अपने दुःख को भूले।

मेले की है बात निराली
तिल रखने को जगह न खाली,
लगता जैसे मना रहे हैं
लोग यहाँ आकर दीवाली।

मेलों से अपनापन बढ़ता
रंग प्रेम का मन पर चढ़ता,
मानव सामाजिक होने का
पाठ इन्हीं मेलों से पढ़ता।

जब जब भी है आता मेला
हमको खूब लुभाता मेला,
इसे देख मन खुश हो जाता
नई उमंगें लाता मेला।

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