मुफ्त की चीज पर कविता
मुफ्त की चीजों से..19.03.22
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हमारी आदत सी हो गई है
कि हमें सब कुछ मुफ्त में चाहिए
भिखारियों की तरह हम मांगते ही रहते हैं
राशन पानी बिजली कपड़ा मकान रोजगार मोबाइल और मुफ्त का वाईफाई कनेक्शन
मुफ्त की चीजों से
बदलने लगे हैं हमारे खून की तासीर
हम कमाना नहीं चाहते अमरबेल की तरह फैलना चाहते हैं
मुफ्त की चीजों से
घटती जा रही है श्रम की ताकत और हमारे स्वाभिमान
मुफ्त की चीजों से
शून्य होता जा रहा है
विरोध में बोलने और खड़े होने का साहस
मुफ्त की चीजों से
हम भरते जा रहे हैं
गहरे आत्म संतोष और निकम्मेपन से
जो सबसे जरूरी है उनके लिए
वह हमें कुछ भी नहीं दे रहे हैं
वरन बस ले रहे हैं हमसे हमारी हैसियत
छीन रहे हैं हमारा वजूद
और हम हैं की बड़े खुश हो रहे हैं
कि वे हमें सब कुछ मुफ्त में दे रहे हैं
उनका मुफ्त में देना
एक गहरा षड्यंत्र है
हमें लगता है
कि मुफ्त की चीजों से हमारी जिंदगी भर गई है
मगर मुफ़्त लेने के एवज में
हमारी असली जिंदगी हमसे छीन गई है।
–नरेंद्र कुमार कुलमित्र
9755852479