मनीभाई के हाइकु अर्द्धशतक भाग 9

हाइकु

हाइकु अर्द्धशतक भाग 9

४०१/
शम्मी के पेड़
धनिष्ठा वसु व्रत
मंगल स्वामी


४०२/
मंडलाकार
सौ तारे शतभिषा
राहु की दशा।

४०३/ रोपित करें
पूर्व भाद्रपद में
आम्र का वृक्ष।

४०४/
मांस का दान
उत्तरा भाद्रपद
पूजा निम्ब के ।

४०५/
कांसे का दान
रेवती पूषा व्रत
महुआ पूजा।

४०६/
श्रीराम जन्म
अभिजीत जातक
है भाग्यशाली ।  

४०७/ सांध्य का तारा
शुक्र बन अगुआ
लड़े अंधेरा ।

४०८/
तरू की मुट्ठी
धंस चली धरा में
बचाने पृथ्वी ।

४०९/
सौर मंडल
बुध लगे अनुज।
गुरू अग्रज।

४१०/ बने नौ ग्रह
हुआ महाविस्फोट
सृष्टि कोख में ।

४११/
पूर्णिमा रात
प्रतिशोध में केतु,
लगाये घात।

४१२/
अमावस में
राहू बैरभाव से
है तलाश में ।

४१३/
जन विस्फोट
पृथ्वी हांफती लदी
मंगल आश।

४१४/ अनोखा शनि
नजारा है सुंदर
नजर बुरी।

४१५/ धन तेरस
बाजार की चमक
स्वर्ण के जैसा ।

४१६/
रास पूर्णिमा
चाँद सोलह कला
अमृत वर्षा।

४१७/ ऋषि पंचमी 
चुनरी ओढ़े सृष्टि
पीताम्बर की।

४१८/
आठें कन्हैया
जन्मदिन प्रभु का
बंशी बजैया।

४१९/ भातृ द्वितीया
यमी स्नेह से भरी
यम के प्रति ।

४२०/
करवा चौथ
दीर्घायु हो सुहाग
निर्जला व्रत

४२१/
कृपा आपकी
छत्रछाया आपका
गुरु की सदा

४२२/ राम नवमी
पावन तीर्थ स्नान
हो पुण्य भागी।

४२३/
है स्वतंत्रता
बचा नहीं बहाना
तू आगे बढ़।

४२४/ घना अंधेरा
पर जुगनू की लौ
मिटेगी नहीं ।।

४२५/ सपने देखो
तुम जागते हुए
वही फलेंगे।।

४२६/ युवा चेतना
गिर पड़ा खाई में
कौन उबारे?

४२७/
प्रेरणा पथ
खुले पग पग में
चलें परख ।।

४२८/ मीठी जुबानी
चुम्बकीय खिंचाव
शीतल छांव।।

४२९/ है स्वाभिमान
सबसे बड़ी पूंजी
जीवन कुंजी ।।

४३०/
फल की खोज
बिन कर्म फूल के
संभव नहीं ।  

४३१/ जिन्दगी घड़ी
फिसलती रेत सी
मुट्ठी से दूर।।

४३२/ बादल आये
जग को नहलाने
प्यास बुझाने ।।

४३३/ मानव यंत्र
भूल चला है जीना
घिसता पुर्जा।।

४३४/ दाना दिवाला
पौधा न बन सका
हुआ निवाला।

४३५/ नभ के खग
नापते रहते धरा
ढूँढते सिरा ।।

४३६/ सब एक हैं  ।
निरा मानव छोड़के
कैसी है बुद्धि ?

४३७/ सर्वविदित
गुरूओं की महत्ता
  पग वंदन।

४३८/ मिटे दुविधा
गुरू की संगत में
निर्भय मन ।

  ४३९/ शिष्य की राह
गुरू की दिशा ज्ञान
बिछे चमन।

४४०/ नहीं सहज
मिलते सच्चे गुरू
कर्म मगन।

४४१/ शरद ऋतु

अमृत की फुहार

भीगे संसार।


४४२/ ये कैसी शिक्षा?
बना रही बेकार
है भटकाव।


४४३/
मन – लालसा
सीमाहीन गगन,
भरे उड़ान ।                                 ✍मनीभाई”नवरत्न”

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