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मुझे पता है – रामनाथ साहू ” ननकी

मुझे पता है – रामनाथ साहू ” ननकी

kavita
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मुझे पता है ,
तू मेरा होकर भी मेरा नहीं है ।
हृदय पटल पर ज्ञात बसेरा नहीं है ।।
ये सिर्फ ढोंग ही है ऐ सनम् मेरे ।
तुमसे बेहतर कोई लुटेरा नहीं है ।।

मुझे पता है ,
कभी मिलन संभव नहीं होगा अपना ।
ये रिवायतें तोड़ देंगी हर सपना ।।
नहीं लाँघ सकते बनी लक्ष्मण रेखा ,
व्यर्थ लगे अब तक का वो नाम जपना ।।

मुझे पता है ,
तू सच नहीं बोल सकता जाने कभी ।
नाटक बातचीत गढ़े गये हैं अभी ।।
बात हकीकत नृत्य करती है लब पर ,
तुझे पता नहीं ये जानते हैं सभी ।।

मुझे पता है ,
मैं बेमंजिल ही बढ़ा जा रहा सनम ।
खुशी चैन देकर खरीदा सभी गम ।।
ये हँसी चेहरे की चमक कहती है ,
कभी नहीं सुधरेंगे बेहतर आलम ।।

मुझे पता है ,
ये प्यार नहीं है सब कुछ दिखावा है ।
लिप्त दोनों है नियोजित छलावा है ।।
कश्मकश में है मेरी बुझती साँसें ,
खुली कलई झूठा हर एक दावा है ।।

रामनाथ साहू ” ननकी मुरलीडीह ( छ. ग. )

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