hasdev jangal
हसदेव जंगल

नारा भर हांकत हन (व्यंग्य रचना)

नारा भर हांकत हन (व्यंग्य रचना)

हसदेव जंगल


पेड़ लगाओ,पेड़ बचाओ ,
खाली नारा भर ला हांकत हन।
अऊ खेत जंगल के रुख राई ला,
चकाचक टांगिया मां काटत हन।

थोकिन रुपिया पईसा के लालच मा,
सउघा रुख राई ला काट डरेन।
दाई ददा बरोबर जियइया रुख ला,
जीते जी मार डरेन।

पर्यावरण बचाना हे,कहीके
नारा ला कांख कांख के हांकत हन।
नरवा, कुआं,नदिया,तरिया,ला,
बिकास के धुन मा पाटत हन।

विकास के चक्कर मा, मनखे मन,
पहाड़ अऊ जंगल ला काटत हन।
प्रकृति ला बेच के जम्मों,
धन दौलत ला बांटत हन।

प्रकृति से झन खिलवाड़ करव,
ये हमर महतारी आय।
जम्मो जीव जंतु मनखे के,
सुग्घर पालनहारी आय।

प्रकृति महतारी खिसियाही जब
भयंकर परलय लाही।
मनखे जीव सकल परानी,
धरती घलो नई बच पाही।

जम्मो मनखे मन मिलके,
पर्यावरण ला बचाबो।
अवईया पीढ़ी बर हमन ,
ये धरती ला सुग्घर बनाबो।

✍️रचना –महदीप जंघेल

Comments

  1. Priyanka janghel

    आज की सत्यता है भैया यही तो
    👌👌👌👌 आपकी रचना बहुत ही जबरदस्त है

  2. Mahdeep Janghel

    धन्यवाद

  3. R j

    शानदार और सत्यता पर आधारित कविता है। बहुत ही अच्छा

  4. Mahdeep Janghel

    धन्यवाद जी

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