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नव वर्ष का उत्सव !

*नव वर्ष का उत्सव !*


मैंने नव वर्ष का उत्सव
आज ये नही मनाया है……….!
किसे मनाऊँ,किसे नही
कुछ समझ न आया है …..!!

चाहे ये विक्रम संवत हो
या जो ग्रेगोरियन रंगाया है
चाहे अपना शक संवत हो
या हिजरी ने जो नचाया है !..मैंने..

गर दिन खराब चल रहा तो
दिन को दीन क्यों बताया है,
जब अपना जेब गरम है तो
देखो फिर ये कैसी माया है !.मैंने..

आज भी वही दिन व रात
कुछ भी अंतर न पाया है,
न तुम बदले न हम बदले
अब काहे को भरमाया है !…मैंने..

ग़रीब झोपड़ी बद से बदतर
आज और कैसे उड़ आया है,
वो तेरा गुरुर और ये मेरा अहं
आज फिर से टकराया है !…मैंने..

सत्य छोड़,इस झूठ प्रपंच को
आज तूने फिर सिरजाया है ,
आकण्ठ ….डूबे भ्रट्राचार को
हटाने,कोई कदम उठाया है!..मैंने..

ये निर्भया,भय से काप रहे
कितनों को जिंदा जलाया है,
राजनीति के चतुर खिलाड़ी
राजधर्म कहाँ छोड़ आया है!.. मैंने..

जल,जंगल,जमीन रक्षा हेतु
क्या इस पर दीप जलाया है,
अपने स्वार्थ के ख़ातिर तूने
‘हसदेव’ जैसों से टकराया है !

मैंने नव वर्ष का उत्सव
आज नही मनाया है ……….!
किसे मनाऊँ,किसे नही ?
कुछ समझ न आया है …….!!

— *राजकुमार मसखरे*
मु.भदेरा (पैलीमेटा/गंडई)
जिला- के.सी.जी (छ.ग.)

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