बसंत ऋतु / राजकुमार मसखरे
राजा बसंत / राजकुमार मसखरे बसंत ऋतु आ...जा आ...जाओ,हे ! ऋतुराज बसन्त,अभिनंदन करते हैं तेरा, अनन्त अनन्त !मचलते,इतराते,बड़ी खूबसूरत हो आगाज़,आओ जलवा बिखेरो,मेरे मितवा,हमराज़ !देखो अब ये सर्दियाँ, ठिठुरन तो…
यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर0 राजकुमार मसखरे के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .
राजा बसंत / राजकुमार मसखरे बसंत ऋतु आ...जा आ...जाओ,हे ! ऋतुराज बसन्त,अभिनंदन करते हैं तेरा, अनन्त अनन्त !मचलते,इतराते,बड़ी खूबसूरत हो आगाज़,आओ जलवा बिखेरो,मेरे मितवा,हमराज़ !देखो अब ये सर्दियाँ, ठिठुरन तो…
चेहरे पे कई चेहरे / राजकुमार मसखरे मुखौटा चेहरे पे लगे हैं कई चेहरेइन्हें पढ़ना आसान नही,जो दिखती है मुस्कुराहटेंवो नजरें हैं दूर और कहीं !इतने सीधे-सादे लगते हैंजो मुखौटा…
राम को माने,राम का नही (राम की प्रकृति पूजा)ओ मेरे प्रभु वनवासी रामआ जाओ अपनी धराधाम,चौदह वर्ष तक पितृवचन मेंवन-वन विचरे बिना विराम!निषाद राज गंगा पार करायेकंदमूल खाकर सरिता नहाए,असुरों…
*लो..और कर लो विकास !*ग्लेशियर का टूटना और ये भूकम्प का आनाभूस्खलन,सुरंग धसना और बादल फटना,सरकार और कॉरपोरेट जगत तो मानते हैंये सभी है महज एक सहज प्राकृतिक घटना !इस…
*नव वर्ष का उत्सव !*मैंने नव वर्ष का उत्सवआज ये नही मनाया है..........!किसे मनाऊँ,किसे नहीकुछ समझ न आया है .....!! चाहे ये विक्रम संवत हो या जो ग्रेगोरियन रंगाया हैचाहे…
कविता संग्रह विश्व रिकार्ड के मायने कोई गीत गा करकोई साज बजा करकोई नृत्य करा करकोई लाखो दीप सजा करकोई ऊँचा रावण जला करकोई कुछ कविता बना करकोई गाड़ी फर्राटे…
राजनीति बना व्यापार जी कविता संग्रह देखो आज इस राजनीति ककैसे बना गया ये व्यापार जी ,लोक-सेवक अब गायब जो हैंमिला बड़ा उन्हें रोज़गार जी !राजनीति अब स्वार्थ- नीति हैकर…
कविता संग्रह छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया 'छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया'ये नारा बड़ अच्छा लगथे!ये नारा बनइया के मन भरमोर पैलगी करे के मन करथे !!जब छत्तीसगढ़िया मन..गुजराती लॉज/राजस्थानी लॉज म रुकथेहरियाणा जलेबी,बंगाली…
दारू विषय पर कविता कविता संग्रह दारू पिये ल झन जाबे समारूदारू पिये ल झन जाबे,,,,गली-गली जूता खाबे समारू दारू पिये ल झन जाबे ,,,,!नाली म परे,माछी ह झूमेमुँहू तैं…
छेरछेरा तिहार के सुग्घर कविता छत्तीसगाढ़ी रचना छेरछेरा - अनिल कुमार वर्मा होत बिहनिया झोला धरके,सबो दुआरी जाबो।छेरछेरा के दान ल पाके,जुरमिल मजा उड़ाबो।।फुटगे कोठी बोरा उतरगे, सूपा पसर ले…