लो..और कर लो विकास पर कविता

*लो..और कर लो विकास !*

ग्लेशियर का टूटना और ये भूकम्प का आना
भूस्खलन,सुरंग धसना और बादल फटना,
सरकार और कॉरपोरेट जगत तो मानते हैं
ये सभी है महज एक सहज प्राकृतिक घटना !

इस तरह की कई हादसों का जिम्मेदार है
विकास की भूख और कई-कई परियोजना ,
होटल,रिसॉर्ट,पुल,बांध,विभिन्न अवैध खनन
और अनियंत्रित मानव बसाहट का होना !

कई नाजुक पहाड़ों में बाँध,बैराज का बनना
नदियों के कई अविरल प्रवाह को रोकना ,
पहाड़ों का पारिस्थिकीय तंत्र को बिगाड़ कर
पहाड़ को खोदकर,खतरनाक टनल बनाना !

कई-कई किलोमीटर का सुरंग को बना कर
पूरा का पूरा पहाड़ खोदकर खोखला करना,
दैत्याकार क्रेन,भारी-भारी निर्माण उपकरण
चट्टानी सीने को बारूद से उड़ाना व तोड़ना !

नदियों से बेतहाशा रेत खनन,प्लांट लगाना
पेड़ों की कटाई कर,पहाड़ों में ड्रिल करना,
इन सभी का जिम्मेदार कौन है ? हम ही हैं
ये मानव निर्मित परिस्थितियों का होना !

कुदरत के हत्यारों अब सम्हल भी जाओ तुम
विकास के आड़ में इतना भी दोहन न करना,
अभी एक ज्वलंत उदाहरण हैं हमारे सामने
इकचालिस मजदूरों का सुरंग में फँसे होना !


— *राजकुमार ‘मसखरे’*