फागुन आ गया

     फागुन आ गया हर्षोल्लास था गुमशुदादौर तलाश का  आ गया।गुम हुई खुशियों को लेकरफिर से  फागुन आ गया॥झुर्रियां  देखी जब चेहरे पर लगा बुढ़ापा आ गया।उम्र की सीमा को तोड़करउत्साही फागुन आ गया॥अहंकार का घना कोहराएकाकीपन  छा गया।अंधेरों को चीरकर...

बासंती फागुन

⁠⁠⁠ बासंती फागुन ओ बसंत की चपल हवाओं,फागुन का सत्कार करो।शिथिल पड़े मानव मन मेंफुर्ती का  संचार करो।1बीत गयी है आज शरद ऋतु,फिर से गर्मी आयेगी.ऋतु परिवर्तन की यह आहट,सब के मन को भायेगी।2कमल-कमलिनी ताल-सरोवर,रंग अनूठे दिखलाते।गेंदा-गुलाब टेसू सब मिलकरइन्द्रधनुष से...

हसरतों को गले से लगाते रहे

हसरतों को गले से लगाते रहे हसरतों को गले से लगाते रहे,थोड़ा थोड़ा सही पास आते रहे..आप की बेबसी का पता है हमें,चुप रहे पर बहुत ज़ख़्म खाते रहे..इस ज़माने का दस्तूर सदियों से है,बेवजह लोग ऊँगली उठाते रहे..मेरी दीवानगी मेरी पहचान थी,आग अपने ही इसमें लगाते रहे..इश्क़ करना भी...

कैसे जुगनू पकड़ूं?

कैसे जुगनू पकड़ूं? पाँव महावर ,हाथों में मेहँदीकलाई में कँगना दिये सँवार ।माथे बिंदिया माँग में सिंदूरमंगलसूत्र गले दिया सँवार ।जननी पर भूल गयी बतानाघर गृहस्थी कैसे सँभालूबाली उमरिया लिखने पढ़नेखेलने की ,कैसे बिसरा दूँ ।मेहँदी रचे हाथों में कलछीकलम कैसे पकडूँगी अब...

किस मंजिल की ओर ?

किस मंजिल की ओर ? क्यारी सूख रही है निरंतर..आग जल रही हैं हर कहीं..घर हो या पास पडौ़स ..विश्वास की डोर नहीं है…टूट रही हैं नित ख्वाहिशेंनहीं  रहा है भाईचारा…प्रेम…स्नेह छूट गया है..कहीं दूर…अंतरिक्ष सदृश्य..वैमनस्य पलने लगा है नजरों में..अंधकार छा रहा है… बादल...