स्वामी दयानन्द सरस्वती जयन्ती (फाल्गुन कृष्ण) पर कविता

स्वामी दयानन्द सरस्वती जयन्ती (फाल्गुन कृष्ण) पर कविता

वह दयानन्द ब्रह्मचारी

O डॉ. ब्रजपाल सिंह संत

दुनिया की प्यास स्वयं पीता, जल लहर बाँटता चलता है,

पूरी आजादी का आसव, हर पहर बाँटता चलता है,

स्वाभिमान की भावना से, भीरुता काटता चलता है,

मानवता का संचालक बन, युग के आगे चलता है।

अमृत की वर्षा करता, खुद जहर चाटता चलता है,

इतिहास सदा पीछे चलता, योगी भूगोल बदलता है,

आर्य तीर्थ पुरुषार्थ शिविर, युग तपोनिष्ठ सुविचारी था,

आजादी डंका बजा गया, वह दयानंद ब्रह्मचारी था।

टंकारा में जनम लिया, वह मूलशंकर मस्ताना था,

मानवता का पैगंबर था, वह सत् का सरल तराना था,

दीवाना बना, बहाना था, जनता ने वह पहचाना था,

भारत वीरों को जगा दिया, स्वाधीनता का परवाना था।

शक्ति की ऊर्जा देता था, वह निराकार व्यापारी था,

आजादी का डंका बजा गया, वह दयानंद ब्रह्मचारी था,

नारी थी पैरों की जूती, वह परदे से बाहर आई,

बाल विवाह हो गए बंद, ऋषिवर ने जनता समझाई।

भाई ने भाई मिला दिए, संगठन था ऐसा कर डाला,

अन्याय का करें सामना हम, हाथों को मिला बनी माला,

वह नगर नगर की डगर चला, कामी उससे भय खाते थे,

सुन महर्षि उपदेश वीर, गंगाजल गजल सुनाते थे ।

कुतर्क काट किए खंड-खंड, वह युग तलवार दुधारी था,

आजादी का डंका बजा गया, वह दयानंद ब्रह्मचारी था।

जहाँ स्वाभिमान का सुख मिलता, करुणा समीर थे दयानंद,

जो फिक्र मुल्क का मिटा गए, दिल के अमीर थे दयानंद,

जो नहीं मिटाए मिट सकती, ऐसी लकीर थे दयानंद,

जो विष पीकर हो गए अमर, आजादी वीर दयानंद ।

है इतिहास साक्षी अपनी संस्कृति को याद करो,

जाति वर्ग भेद को भूलो, नव जागृति आबाद करो,

परिवर्तन लाने वाला हर क्रांतिकारी आभारी था,

आजादी का डंका बजा गया, वह दयानंद ब्रह्मचारी था ।

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