प्रकृति से खिलवाड़/बिगड़ता संतुलन-अशोक शर्मा

hasdev jangal

प्रकृति से खिलवाड़/बिगड़ता संतुलन

प्रकृति से खिलवाड़/बिगड़ता संतुलन-अशोक शर्मा
हसदेव जंगल

बिना भेद भाव देखो,
सबको गले लागती है।
धूप छाँव वर्षा नमीं,
सबको ही पहुँचाती है।

हम जिसकी आगोश में पलते,
वह है मेरी जीवनदाती।
सुखमय स्वस्थ जीवन देने की,
बस एक ही है यह थाती।

जैसे जैसे नर बुद्धि बढ़ी,
जनसंख्या होती गयी भारी।
शहरीकरण के खातिर हमने,
चला दी वृक्षों पर आरी।

नदियों को नहीं छोड़े हम,
गंदे मल भी बहाया।
मिला रसायन मिट्टी में भी,
इसको विषाक्त बनाया।

छेड़ छाड़ प्रकृति को भाई,
बुद्धिमता खूब दिखाई।
नहीं रही अब स्वस्थ धरा,
और जान जोखिम में आई।

बिगड़ रहा संतुलन सबका,
चाहे जल हो मृदा कहीं।
ऋतु मौसम मानवता बिगड़ी,
शुद्ध वायु अब नहीं रही।

ऐसे रहे गर कर्म हमारे,
भौतिकता की होड़ में।
भटक जाएंगे एक दिन बिल्कुल,
कदम तम पथ की मोड़ में।

हर जीव हो स्वस्थ धरा पर,
दया प्रेम मानवता लिए।
करो विकास है जरूरी,
बिना प्रकृति से खिलवाड़ किये।



★★★★★★★★★★★
अशोक शर्मा, कुशीनगर,उ.प्र.
★★★★★★★★★★★

Comments

  1. Abhishek Avatar
    Abhishek

    Bhut badiya

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