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प्रकृति से प्रेम पर कविता

प्रकृति से प्रेम पर कविता

नदी

कितने खूबसूरत होते बादल कितना खूबसूरत ये नीला आसमां मन को भाता है।
रंग बदलती अपनी हर पल ये प्रकृति अपनी मन मोहित कर जाता है।

कभी सूरज की लाली है कभी स्वेत चांदनी कभी हरी भरी हरियाली है।
देख तेरा मन मोहित हो जाता प्रकृति तू प्रेम बरसाने वाली है।

प्रकृति ही हम सब को मिल कर रहना करना प्रेम सिखाती है।
हर सुख दुख की साथी होती साथ सदा निभाती है।

है प्रकृति से प्रेम मुझे इसके हर एक कण से मैने कुछ न कुछ सीखा है।
प्रकृति तेरी गोद में रहकर ही मैने इस दुनिया को अच्छे से देखा है।

हम सबको तू जीवन देती है देती जल और ऊर्जा का भंडार।
परोपकार की सिक्षा देती हमको लुटाती हम पर अपना प्यार।

फल फूल छाया देती देती हो शीतल मन्द सुगंधित हवा।
प्रकृति तेरी खूबसूरती जैसे हो कोई पवित्र सी दुआ।

आओ हम सब प्रकृति से प्रेम करें करें उसका सम्मान।
सेवा नित नित प्रकृति की करें गाएं उसकी गौरव गान।

रीता प्रधान
रायगढ़ छत्तीसगढ़

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