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परोपकार पर हिंदी में कविता

परोपकार पर हिंदी में कविता

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परोपकार पर कविता-सुधीर श्रीवास्तव

संवेदनशील भाव
संवेदनाओं के स्वर
परोपकार की
निःस्वार्थ भावना
गैरों की चिंता से जोड़कर
स्वेच्छा से सामने वाले की
पीड़ा से/मर्म से
खुद को जोड़ने की कोशिश ही
परोपकार है।
बिना लोभ मोह
अपने पराये के भेद किये बिना
किसी का सहयोग/सहायता ही
तो परोपकार है,
हमारे द्वारा किया गया
परोपकार ही तो
हमारी खुशियों का बेजोड़
आधार है।
परोपकार ही तो
हमारी संस्कृति, सभ्यता
और संस्कार है।

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा(उ.प्र.)

बस एक परोपकार करना – प्रवीण गौतम

शीत ऋतु किसी के लिए पर्यटन है
बर्फ में घूमने की मस्ती है।

किसी को गलन वाली ठंड
मानो ठंड चिढ़ा रही हो ।

टूटी छत खुला आसमान
चौड़ा सा आंगन शीत लहर।

तुम घूमना बर्फ की चादर पर
बस एक परोपकार करना ।

जहां खुली कुटिया हो
सिकुड़ता मानव हो ।

स्टेशन पर किसी अजनवीको
उसे बस एक कंबल उढा देना ।

पीछे मुड़कर न देखना
दिल की पुकार सुनकर।

ईश्वर का फरिशता बन जाना ।
उसका भरोसा आस्था ईश्वर है।

प्रवीण गौतम

करो परोपकार सभी निस्वार्थ – रेखा

करो परोपकार सभी निस्वार्थ।

पेड़-पौधे करते है जैसे ऑक्सिजन देकर मानव पर उपकार।

सूरज करता है जैसे अपनी किरणों से रौशन ये संसार।

नदियां बहती है जैसे चारों दिशाओं में बुझाने को प्राणियों का प्यास।

सैनिक करते है जैसै देश कि रक्षा देकर अपने प्राण।

किसान फसलो को जैसे उपजा कर करता है लोगो का कल्याण।

करो सबकी सहायता भूलकर अपना स्वार्थ।

रेखा
गाजियाबाद (उ.प्र.)

परोपकारी बने- सुरंजना पाण्डेय

गुजारनी है तो जिन्दगी हमें
कुछ इस नव विचारों से तो ,
बनाना है हर पल को
यादगार अपने तरीके से।
हर पल को बनाना है बहुत शानदार
रहना है यूं तो हमें नये सोच के सलीके से।
कि लोग आपकी तो मिसाल दे
होना है जीवन में सफल इतना कि
सब आपकी कामयाबी की मिसाल दे।
चुनने है सबसे खुबसुरत लम्हों को
कैद करना है उनको दिल की तिजोरी में।
सँजोने है हमें बेहिसाब से सपने
बिताने है हँसी पल अपनो के संग में।
यकीन मानिए उस दिन आप
सच में भाग्यशाली इंसान कहलायेगे।
जीवन में जब आप किसी के काम आयेगें
करिए बेहिसाब मदद आप दूसरो की।
तो हो सके तो आप परोपकारी बने
पाइए बदले में हर मदद के आप
दुआ ,प्यार और आर्शीवाद ढेरों सारा
हर उस जरूरतमंदो से तो।
फिर ना होगी कभी भी आपको
किसी भी चीज की कमी आपको।
आपका जीवन सच में तो सुन्दर बन जाएगा
तब जा के सच्चे अर्थों में आप इंसान बनेगे।
हो जायेगे आप अजीज सभी के लिए
हो जाएगा आपका नाम अमिट सदा के लिए।
तो आप सचमुच एक अमीर इन्सान कहलायेगे
बनिए दिल से आप सदा ही तो अमीर
धन से अमीर तो यहां सब ही होते है।
जो अपने व्यवहार और कार्य से तो
सबका दिल जीते वही सच्चे अर्थो में
एक काबिल इन्सान और परोपकारी होता है।
✍️ सुरंजना पाण्डेय

परहित – डॉ शशिकला अवस्थी

जग को मानवता का पाठ पढ़ाना ।
खुद भी मानव धर्म निभाना।
परहित कर ,सभ्य समाज बनाना।
दुख दर्द में सबको गले लगाना।
तन -मन- धन देकर, परहित में जुट जाना।
इस धरती पर स्वर्ग है लाना।
कोई रहे ना भूखा प्यासा मदद पहुंचाना ।
अन्न, वस्त्र, औषधि देकर ,दर्द बंटाना ।
दया ,परहित धर्म ,सदा निभाना ।
परोपकार करते, धरती के फरिश्ते बन जाना ।
मुस्कुराहट मन भर के लुटाना।
सब की हंसी खुशी में तुम मुस्काना।
प्रगति पथ पर सब को आगे बढ़ाना।
विश्व बंधुत्व भाव ,जन-जन में जगाना।
आदर्श विचारों की पावन गंगा बहाना।
राष्ट्रहित में जीना और कुर्बान हो जाना ।
करोना महामारी में संवेदना जगाना।
जरूरतमंदों की मदद में हाथ बढ़ाना।
देशवासियों को भी परोपकार में लगाना।
जग को मानवता का पाठ पढ़ाना।
खुद भी मानव धर्म निभाना।

रचयिता
डॉ शशिकला अवस्थी, इंदौर
मध्य प्रदेश

परोपकार- ममता प्रीति श्रीवास्तव

लू के थपेड़ों से लड़ लड़ के,
जिसने जिलाया था तुझे।
हो शीत ताप या बरसात,
सीने लगाया था तुझे।

खुद कष्ट सारे सहके,
हर नाम कर दिया तुझे।
देखा आज,,,
मन अकिंचन दुखी हुवा,
असहय पीड़ा से ग्रसित हुवा।
स्निग्ध ममता से भरे चक्षु से,
नित अश्रु धार बहे।

जो भाव दुःख विषाद है,
बयां करूं शब्दों में वो मेरा हाल ना।
अस्थि पंजर सी काया,
थे वो पत्थर बीन रहे।

ट्रेन की पटरी किनारे,
वो आसरा है ढूंढ रहे।
जल की बूंद एक तो मिले,
दो जून की रोटी मिले।

इस आस में एक पिता,
बूढ़ी अस्थियों से खेल रहा।
क्या यही गति है?
सोचूं मैं बावरी सी,
व्याकुलता से भरी सी।

स्नेह पूरित आगे बढ़ के,
पैरों में मैं गिर पड़ीं।
बूढ़ी काया में जान आई,
बुझती आंखों में आस आई।

देखा अपलक सोचा
फिर बोला
तू मेरी वही लाडली
जो रहती थी मेरी गली।

अश्रु की धारा उधर भी,
अश्रु की धारा इधर भी।
अविरल है चली।।

स्नेहपुरित साथ पा के,
सोया हुवा विश्वास जागा।
बूढ़ी काया चल पड़ी,
अधरों पर मुस्कान छाया।
तोड़ी
तोड़ी मैने सगाई,
निष्ठुर हृदय इंसान से।
जो पिता का सगा ना हुवा,
वो क्या देगा सम्मान मुझे।।


स्वरचित
ममता प्रीति श्रीवास्तव (प्रधानाध्यापक) गोरखपुर, उत्तर -प्रदेश।

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