यहाँ पर राजकुमार मसखरे की कवितायेँ प्रकाशित की गयी हैं आप इन कविता को पढ़कर अपनी राय जरुर दें कि आपको कौन सी कविता अच्छी लगी.
इन्हें पहचान !
कितने राजनेताओं के सुपुत्र
सरहद में जाने बना जवान !
कितने नेता हैं करते किसानी
ये सुन तुम न होना हैरान !
बस फेकने, हाँकने में माहिर
जनता को भिड़ाने में महान !
भाषण में राशन देने वाले
यही तो है असली शैतान !
किसान के ही अधिकतर बेटे
सुरक्षा में लगे हैं बंदूक तान !
और खेतों में हैअन्न उपजाता
कंधे में हल है इनकी शान !
इन नेता जी के बेटों को देखो
कई के ठेके,कीमती खदान !
संगठन में हैं कितने काबिज़
रंगदारी के हैं लाखों स्थान !
बस ये नारा लगाते हैं फिरते
जय जवान , जय किसान !
किसान, मजदूर, जवान ही तो
ये ही हैं धरती के भगवान !
कुर्सी के लिए लड़ने वालों को
हे मेहनतकशों !इन्हें पहचान!
राजकुमार मसखरे
बनावटी चेहरे पर कविता
चेहरे पे लगे हैं कई चेहरे
इन्हें पढ़ पाना आसान नहीं ,
ये जो दिखती है मुस्कुराहटें
वो नजरें हैं दूर , और कहीं !
इतने सीधे सादे लगते हैं
जो मुखौटा लगाए बैठे हैं,
ये कई निर्बलों,असहायों के
जज़्बातों के गला ऐंठे हैं !
मासूम चेहरा, दिखते कई हैं
भीतर ‘राज’ छुपा के रखते हैं,
जब भी मौका मिले इन्हें तो
सीधे-सीधे गरल उगलते हैं !
सूरत पर मत जाओ यारों
इनकी सीरत का पता लगाओ,
न जानें ये कब रंग बदल दे
फिर कालांतर में न पछताओ !
— *राजकुमार मसखरे*
विवाह: प्रश्नचिन्ह
विवाह पर विभिन्न तरह के
विवाद खड़े होते हैं,
कहते हैं कई आबाद हुये
तो कोई बरबाद !
दहेज मिला, हुआ आबाद
दिये दहेज,हुये बरबाद !
लेकिन यथार्थ में
एेसा नही होता —
जो आबाद का जामा पहने हैं
उनकी आवश्यकताएँ अनंत होती है,
और मांग उपर मांग रखते हैं !
नही मिलने पर /प्रताड़ना स्वरूप
बहु जला दी जाती है या जल जाती है ,
फिर कथित आबाद होने वालों की
बरबादी की बारी आती है !
दहेज देने वाले तो
पहले ही बरबाद हैं ।
कहीं कहीं ही इस आधुनिक विवाह में
अपने पवित्र बंधन को निभा पाते हैं !
नही तो इस बंधन से
मुक्त होना चाहते हैं ।
आज समाज पर यह
प्रश्न चिन्ह खड़ा है !
— राजकुमार मसखरे ??
मु.-भदेरा
कवि जो ऐसे होते हैं
कवि के हाथ मे है बाँसुरी
जो मधुर स्वर प्रवाहित करता है ,
आवश्यकता होने पर कवि
युद्ध का शंखनाद वह भरता है !
कवि साहित्य में अपनी कलम से
समाज मे अमूलचूल परिवर्तन लाता है,
धर्म,नीति,राजनीति,तथा उपदेश
ये जो पास ठहर नही पाता है !
कवि जो होता बिलकुल मनमौजी
जिस पर बाह्य नियत्रंण न होता है,
फिर भी मर्यादाओं में बंध कर वो
श्रेष्ठ मानव,प्रबुद्ध विचारक होता है !
नैतिक,मौलिक,दार्शनिक मूल्यों का
लेखन में बखूबी सामंजस्य पिरोता है,
केवल मनोरंजन वह रचता नही
उचित उपदेश का मर्म संजोता है !
— राजकुमार मसखरे
तू तो शेर है
इंसान को कह दो कि
तू तो शेर है
फिर देखना उनकी बाजूओं में
कितना जोर है !
गर कह दो कि
तू तो है जानवर
फिर कह उठेगा
तू तो गधा है
समझे मान्यवर !
अब जानवर मे
समझना है फर्क
इंसान होने का नाटक
करते रहो तर्क-वितर्क !
भई जानवर तो
जानवर होता है
पर नही कह सकते
सभी इंसान
इंसान भी होता है !
अब पशु भी
सभ्य-भद्र होने लगे
कथित इंसान की
इंसाननियत देख कर
वे भी रोने लगे !
मौका परस्त इंसान
मौका देख कर रंग बदलता है
और इधर ये पशु
अपना रंग बदलता है
न धर्म बदलता है
न अपनों से जलता है !
इंसान ये मूक,हिंसक पशु
शेर कहलाना गर्व समझता है
इधर मरियल सा भी कुत्ता
रामु,मोती का होना
उसे बहुत ‘अखरता’ है ! —- *राजकुमार मसखरे*
नव वर्ष (चिंतन)
मैने नव वर्ष का उत्सव,नही मनाया है
और ये नव वर्ष क्या,समझ न आया है ,
वही दिन वही रात, कुछ न अंतर पाया है
मैने नव वर्ष का उत्सव नही मनाया है !
न तुम बदले ,न हम बदले
अब काहे को भरमाया है…..मैने…!
गरीब की झोपड़ी बद से बदतर
और भी ये उड़ आया है ………मैने…..!
तेरा गुरूर और मेरा अहम्
आज फिर से टकराया है …..मैने……!
सत्य छोंड कर, झुठ प्रपंच को
आज तुने फिर सिरजाया है….मैने…..!
नैतिक जीवन जीने का,क्या सोचा
क्या तुने कसम खाया है ……मैने……!
न दुर्गूण त्यागे ,न सदगुण अपनाए
बस मोह का जाल बिछाया है ……मैने…..!
आकण्ठ में डूबे, भ्रष्टाचार का
दूर हटाने,कोई कदम उठाया है….मैने……!
राजनीति से नेता बने तुम
राजधर्म कहाँ छोड़ आया है ….मैने……….!
जल,जंगल,जमीन की करें रक्षा
क्या इस पर दीप जलाया है …..मैने……..!
मैने नव वर्ष का उत्सव नही मनाया है .!!!!!
—- राजकुमार मसखरे
मु. -भदेरा (पैलीमेटा-गंडई)
जि.-राजनांदगाँव,( छ. ग. )
प्रश्न….?
हे ! द्रोपदी
अब कृष्ण नही आएंगे
अपनी लाज बचाने
स्वयं सुदर्शन चलाना होगा !
हे सीते !
अब राम नही आएंगे
अपहरण के बदले
स्वयं को धनुष चलाना होगा !
हे ! निर्भया, हे प्रियंका…
ये सरकार पर…
ये न्यायालय पर
ये पत्रकार पर…
भरोसा मत कर.
अब ‘बैंडिट क्वीन’ बन
फैसले अपने हाथ में ले
उतार दे गोली उस दरिंदे के सीने पर
बीच चौराहे पर !!
—- राजकुमार मसखरे
संत बने जो नेता !
बाबा,योगी,साध्वी संत
साधु,त्यागी और महंत!
पहले लगाये रहते थे ये ध्यान
समाज सुधार,अध्यात्म महान !
प्रवचन,भक्ति,योग और तपस्या
हल करते थे,पीडितों की समस्या !
हिमालय,कानन,कंदरा मे जाते
शांति के खोज मे रमे ही पाते !
आज ये कुछ रास्ता भटक गये
माया-मोह के कुर्सी में अटक गये !
शांति मिलती अब इन्हे वो सदन में
नकली चोला,देखो डाले बदन में !
कब कैसे मंत्री बनूूँ ,ये अब ताक रहे
तभी विधानसभा,संसद को झाँक रहे!
झोपड़ी से अब महल मे आसन लगाये
प्रवचन छोड़,जनता को भाषण पिलाये!
इनके पाँचों उँगली घी मे है मस्त
जनता इनके कारनामों से है त्रस्त !
तब ये क्या थे,अब क्या हो रहा देश मे
साधु-संत सब देखो नकली वेष में !
कहाँ हो भगवन अब आ भी जाओ
इन बहुरूपियों को जरा होश मे लाओ !
राजकुमार मसखरे
चलो विकास दिखाएँ !
सड़कों का जाल बिछाएँ
कृषि जमीन काट कर
हम विकास बताएँ…………..
चलो…….. !
बड़े बड़े नहर सजाते रहें
रास्ते मे आये घने पेड़ को
काट,आरा मिल ले जाएँ…….
चलो………..!
समृद्धि के लिये भारीभरकम
कारखाना,चिमनी लगा कर
प्रदूषित जल नदी मे बहाएँ….
चलो…………!
फसल के उपर फसल हो
मृत मृत हो मृदा फिर भी
रसायनों का उपयोग कराएँ…
चलो…………!
जगह जगह हो मदिरालय
कैसिनों हो या हुक्का बार
हर गाँव गाँव लगवाएँ……….
चलो…………!
नलकूपों का हो भरमार
पानी है आज सरल लगा
चाहे कुएँ,तालाब सूख जाएं…
चलो……………!
जगमग बिजली,डी.जे.धुन
ग्लोबल वार्मिंग को भूल कर
थिरक थिरक नाच कर जाएँ..
चलो विकास दिखाएँ ! — *राजकुमार मसखरे*
एक दिन तुझे है जाना
एक दिन तुझे है जाना
काहे को है इतना गुमान,
महल-अटारी वाले धनवान
या झुग्गी के महा-इंसान !
तुला मे सबको तौल रहा
नीली छतरी वाले भगवान !
उनको भी है जाना——-
हृदयघात,मधुमेह,गुर्दा
या भारी अवसाद से !
इनको भी है जाना ——-
भुखमरी, गरीबी, कर्ज
या कोई संताप,फसाद से !
कितने ढ़ोगी,संत,नेता,बाबा
पहुँच गये हैं जेल मे ,
और कितने हैं भूमिगत
न जाने कितने बेल में !
सब हिसाब-किताब होगा
बराबर यहीं इहलोक मे ,
कुछ बाकी रह जायेगा तो
उसका भी होगा परलोक मे !
दुनिया को तुम समझो यारों
ये दुनिया है सब गोल-गोल,
रत्ती नही जायेगा संग मे
बोलो सबसे मीठे बोल !
—– राजकुमार मसखरे
नाम बड़ा या काम
क्या रखा है नाम में
जो नाम बदलते जा रहे ,
ध्यान रहा न काम में
जो काम से ध्यान हटा रहे।
जो नाम दर्ज इतिहास मे
उनका वजूद तुम मिटा रहे ,
इतिहास से छेडछाड़ में
अपना फर्जी नाम कमा रहे ।
बेशक कामदार बनो तुम
ये नामदार को क्यों भा रहे ,
भ्रम में पड़ी जनता सारी
तुम बस भैरवी राग सुना रहे ।
जरूर अपना नाम बदलो
गर काम नही करा पा रहे ,
मसखरे का चिंता छोड़ो
क्या मंगल में बसने जा रहे ।
—- राजकुमार मसखरे
देख प्रकृति अधुरी है !
देखो ये प्रकृति स्वयं है अधुरी
तो कैसे होगी तेरी इच्छा पूरी !
चाँद के पास शीतल सौम्य है चाँदनी
पर सुन्दर उपवन की,नही कोई कहानी ।
सूर्य के पास तेज प्रकाश प्रबल है
पर कहाँ वहाँ,पीने शीतल जल है ।
समुद्र के पास है अथाह जल राशि
पर तृप्त होने,मीठा जल की प्यासी !
पृथ्वी के पास देखो जीवंत संसार है
पर रोशनी का कोई नही आसार है ।
देखो ये प्रकृति तो हमेशा ही अधुरी है
तभी अपूर्णता,नये निर्माण की धुरी है ।
धन संग्रह की आदत तो गजब भयी
विषयों को भोगते, ये जिन्दगी गयी ।
अधुरी प्रकृति में ये दृष्टि दौडा़ना छोंड़
अंतर्दृष्टि आत्मा से निकालो इसका तोड़ ।
देखो संतोषी तो हरदम परम सुखी है
मिला संतोष धन,तब कोई नही दुखी है ।
—राजकुमार मसखरे
भदेरा+पैलीमेटा (गंडई)
जि.-राजनांदगाँव,छ.ग.
ये रिश्ता क्या कहलाता है
ये रिश्ता क्या कहलाता है
मुझे समझ नही आता है !
सुख-दुख में साथ जरूर होते
बस औपचारिकता निभाता है!
मजबूरी में आता,चला जाता
सौजन्य भेंट,नही सुहाता है !
कभी कुशल क्षेम भी पूछ लेते
तेरे लिये समय,कहाँ आता है !
बस रिश्ते को हैं ढो़ रहे सभी
अपनेपन का एहसास रह जाता है !
मस्त ‘ सीरियल ‘ देख रहे
‘ये रिश्ता क्या कहलाता है !’
— राजकुमार मसखरे
*धारा 370,35-A*
××××××××××××××
जन्नत ल जहन्नूम होय बर
अगर बचाना हे…,
अनुच्छेद 370,35-A
जरूर हटाना हे…! ये धारा जब तक
इँहा काश्मीर ले नइ हटही,
तब तक जान लव
ये स्वर्ग ह बारूद म पटही! विशेष अधिकार मिले ले
फोकट अउ सस्ता में
खाय बर मिलत हे,
त कइसे नइ पनकही
ये पत्थर बाज मन
जेन घाटी म पलत हे ! जेन सरकार आथे
येला हटाय खातिर
खूबेच के चिल्लाथे ,
फेर का करबे जी
ये मिठलबरा बर
कुर्सी ह आड़े आथे ! अपन बर समझौता झन करव
देश रक्षा बर तुम लड़ मरव ,
ये लाहौर म तिरंगा फहरा के
महतारी चरन म माथ धरव !
— *राजकुमार मसखरे*
देखो इनकी औकात
हनुमान जी की जात पर
खूब हो रहा रोज बवाल !
नेता अपने मतलब लिये
उगल रहे हैं कई सवाल !
जी कोई कहता है दलित
तो कोई कहता आदिवासी!
कोई बताते हैं इन्हें ब्राम्हण
कोई अल्पसंख्यक,रहवासी!
भगवान तो भगवान होता है
भला भगवान का क्या जात !
ये हैं बस अपनी रोटी सेंकने
नित करे सियासत की बात !
पौराणिक गाथाओं को ये
ऐतिहासिक बता,करे घात !
खुद की जात तो पता नही
देखो इनकी कैसी औकात !
— *राजकुमार मसखरे*
भूख
ये परम्परा ये आदर्श
ये संस्कार ये ईमान
आखिर कब ?
जब तक पेट भरा हो
तब तक मचलती है !!
भूख
वह धधकती
आग की ज्वाला है
जिनकी लपटों से
सब कुछ जल कर
खाक हो जाती है !!
— राजकुमार मसखरे