राक्षस दहन पर कविता

राक्षस दहन पर कविता

किसी भी राष्ट्र के सर्वतोमुखी विकास के लिए विद्या और शक्ति दोनों देवियों की आराधना और उपासना आवश्यक है। जिस प्रकार विद्या की देवी सरस्वती है, उसी प्रकार शक्ति की देवी दुर्गा है। विजया दशमी दुर्गा देवी की आराधना का पर्व है, जो शक्ति और साहस प्रदान करती है। यह पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। विजया दशमी का पर्व दस दिनों तक (प्रति पदा से दशमी तक) धूमधाम से मनाया जाता है। इसमें कई प्रकार की पूजा होती है। नवरात्र पूजा, दुर्गा पूजा, शस्त्र पूजा सभी शक्ति की प्रतीक दुर्गा माता की आराधना और उपासना है। अतीत में इस देवी ने दुष्ट दानवों का वध करके सामान्य जन और धरती को अधर्मियों से मुक्त किया था।

kavita

हाँ मैं रावण हूँ, मैं ही हूँ रावण।
मेरा अस्तित्व है चिर पुरातन।
हूं मैं प्रगल्भ,प्रकाण्ड,
मेरी गूँज से हिले पूरा ब्रह्मांण्ड।
मेरा मन निर्मल ,मुझ में है अपार बल,
चारित्रसंपन्नता में मैं उज्जवल ।
मुझको दहन कर पाते राख,
पर क्या सोचा कितनी पवित्र है मेरी साख।
गृह,भवनों में छिड़कते तुम,
दिव्य बनाते मुझको तुम।
पर नहीं राक्षस मैं मानव जैसा,
कैसे समझाऊँ मैं था कैसा?
देख मन में होता हाहाकार ,
शीघ्र करो तुम इनका संहार।
इनको फूँको तुम रावण नाम से,
मुक्त करो इस धरा को राक्षसों के काम से ।
हर अबला नारी हारी,
राक्षसों के कुकर्म की मारी
मारों,फूँको, दहन करो तुम,
राक्षस जाति को नष्ट करो तुम,
मेरा दहन कर मत गर्व करो तुम,
दहन करो राक्षसों का तब दंभ भरो तुम।
माला पहल ‘मुंबई’

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