साधना पर कविता

साधना पर कविता

करूँ इष्ट की साधना,
कृपा करें जगदीश।
पग पग पर उन्नति मिले,
तुझे झुकाऊँ शीश।।

योगी करते साधना,
ध्यान मगन से लिप्त।
बनते ज्ञानी योग से,
दूर सभी अभिशिप्त ।।

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जो मन को हैं साधते,
श्रेष्ठ उसे तू जान।
दुनिया के भव जाल में,
फँसे नहीं वो मान।।

करो कठिन तुम साधना,
दृढ़ता से धर ध्यान।
मन सुंदर पावन बने,
संग मिले सम्मान।।

मानव कर्म सुधार चल,
वही साधना जान।
हृदय शुद्ध कर नित्य ही,
करले गुण रसपान।।

~ मनोरमा चन्द्रा “रमा”
रायपुर (छ.ग.)

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