संभव क्यों नहीं कविता-विनोद सिल्ला

संभव क्यों नहीं कविता

कामना है
न हो कोई सरहद
न हो कोई बाधा
भाषाओं की
विविधताओं की
जाति-पांतियों की
सभी दिलों में बहे
एक-सी सरिता
सबके कानों में गूंजे
एक-से तराने
सबके कदम उठें
और करें तय
बीच के फांसले
यह सब
नहीं है असंभव
आदिकाल में था
ऐसा ही
फिर आज संभव
क्यों नहीं

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