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संवेदना पर कविता -अमित दवे

संवेदना पर कविता

कथित संवेदनाओं के ठेकेदारों को
संवेदनाओं पर चर्चा करते देखा।

संवेदनाओं के ही नाम पर संवेदनाओं का
कतल सरेआम होते देखा।।

साथियों के ही कष्टों की दुआ माँगते
सज्जनों को शिखर चढते देखा।।

खेलों की बिसातों पे षड्यंत्रों से
अपना बन जग को छलते देखा।।

वाह रे मेरे हमदर्दों हमदर्दी की आड में
तुमको क्या क्या न करते देखा?

बस करो अब ओ जगत् के दोगलों
चरित्र दोहरा जग ने आँखों से देखा।।

सादर प्रस्तुति
©अमित दवे,विवेक

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