सावन का चल रहा महीना – उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट

सावन का चल रहा महीना

sawan par kavita
वर्षा ऋतु विशेष कविता

सपने अब साकार हो रहे, जो थे कब से मन में पाले
सावन का चल रहा महीना, देखो सबने झूले डाले।
पत्थर पर जब घिसा हिना को, फिर हाथों पर उसे लगाया
निखरी सुंदरता इससे तब, रंग यहाँ जीवन में छाया
हरियाली तीजों पर मेला, किसके मन को यहाँ न भाया
आयोजन हर साल हो रहे, सबने ही आनंद उठाया

खूब सजे- सँवरे हैं अब सब,चाहे गोरे हों या काले
सावन का चल रहा महीना,देखो सबने झूले डाले।

अपनी मम्मी साथ तीज पर, आई है जो लगे सुहानी
छोटी सी प्यारी नातिन पर, लाड़ दिखाएँ नाना- नानी
होता है इतना कोलाहल, रिमझिम बरस रहा है पानी
पेड़ों पर झूले में सखियाँ, लगती हैं परियों की रानी

रंग चढ़ा बुड्ढे- बुढ़ियों पर,झूम रहे बनकर मतवाले
सावन का चल रहा महीना,देखो सबने झूले डाले।

वातावरण सलोना इतना, किसको समझें यहाँ पराया
रूठ गया हो जिसका अपना, उसको उसने आज मनाया
मन में उमड़ा प्यार सभी के, दूर हुआ नफरत का साया
भोले बाबा की महिमा से, ऐसा समय लौटकर आया

होते अब भंडारे इतने, नहीं कहीं रोटी के लाले
सावन का चल रहा महीना,देखो सबने झूले डाले।

रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एड०
‘कुमुद- निवास’
बरेली (उ० प्र०)
मोबा०- 98379 44187

(सर्वाधिकार सुरक्षित)

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