शाकाहार/प्रकाश कुमार यादव

शाकाहार/प्रकाश कुमार यादव

कल मैं गया था बाजार,
वहां देखा सब्जियों का विस्तार।

रंग बिरंगे सब्जियां देखकर,
मुझे सब्जियों से हो गया प्यार।

बैंगन आलू प्याज लौकी,
अनेक सब्जियों का हुआ दीदार।

लाल लाल टमाटर ने तो,
बढ़ा दिया मेरे चेहरे का निखार।

देखा मैंने बाजार में,
सब्जियों के भी होते है परिवार।

प्रकृति ने हमें तरह तरह के,
दिया है सब्जी के रूप में आहार।

फिर भी पता नहीं क्यों,
लोग जीवों पर करते हैं अत्याचार।

क्यों करते हैं जीव जंतुओं से,
हम मानव आखिर दुर्व्यवहार।

जीव जंतुओं को खाते हैं,
बिगाड़ लिए है अपने हम संस्कार।

जबकि जीव जंतु भी,
इस सृष्टि के है हम जैसे ही आधार।

उपलब्ध है जबकि यहां,
अनेक सब्जियां अनेक शाकाहार।

फिर भी इंसान है दुष्ट,
और अजीब से अलग है ये संसार।

जीव जंतुओं को खाने से,
कौन सा हो जाता है स्वप्न साकार।

जबकि सभी को पता है,
शाकाहार ही है सर्वोत्तम आहार।

प्रकाश कुमार यादव

दिवस आधारित कविता