शाकाहारी पर दोहे / डिजेन्द्र कुर्रे
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श्रेष्ठ मनन चिंतन रहें, विनयशील व्यवहार।
जिसने अपने जन्म में, चुन ली शाकाहार।।
शाकाहारी को मिले, चिंतन में अध्यात्म।
भोज तामसिक से मिले, मानवता को घात।।
हरि-हरि भाजी शाक में, भरा ब्रम्ह का तत्व।
जीव वधन में है नहीं, मानवता सुख सत्व।।
गोभी पालक मेथियाँ, और टमाटर लाल।
जिसने खाया स्वास्थ से, वे है मालामाल।।
सात्विकता के रंग में, रंग गए जो लोग।
उन्हें नहीं करना पड़े,दुख पीड़ा का भोग।।
धरती की उपकार का, प्रतिफल शाकाहार।
पोषण दे मानव तन को, करता है विस्तार।।
जग में शाकाहार है, ब्रम्ह तत्व के केन्द्र।
शाकाहारी सब बने, करता विनय डिजेन्द्र।।
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डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
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श्रेष्ठ मनन चिंतन रहें, विनयशील व्यवहार।
जिसने अपने जन्म में, चुन ली शाकाहार।।
शाकाहारी को मिले, चिंतन में अध्यात्म।
भोज तामसिक से मिले, मानवता को घात।।
हरि-हरि भाजी शाक में, भरा ब्रम्ह का तत्व।
जीव वधन में है नहीं, मानवता सुख सत्व।।
गोभी पालक मेथियाँ, और टमाटर लाल।
जिसने खाया स्वास्थ से, वे है मालामाल।।
सात्विकता के रंग में, रंग गए जो लोग।
उन्हें नहीं करना पड़े,दुख पीड़ा का भोग।।
धरती की उपकार का, प्रतिफल शाकाहार।
पोषण दे मानव तन को, करता है विस्तार।।
जग में शाकाहार है, ब्रम्ह तत्व के केन्द्र।
शाकाहारी सब बने, करता विनय डिजेन्द्र।।
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डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”