शह-मात पर कविता-विनोद सिल्ला

शह-मात पर कविता

जाने क्यों
शह-मात खाते-खाते
शह-मात देते-देते
कर लेते हैं लोग
जीवन पूरा
मुझे लगा
सब के सब
होते हैं पैदा
शह-मात के लिए
नहीं है
कुछ भी अछूता
शह-मात से
लगता है
शह-मात ही है
परमो-धर्म
शह-मात है
कण-कण में व्याप्त
शह-मात ही है
अजर-अमर

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