डॉ. राधाकृष्णन जैसे दार्शनिक शिक्षक ने गुरु की गरिमा को तब शीर्षस्थ स्थान सौंपा जब वे भारत जैसे महान् राष्ट्र के राष्ट्रपति बने। उनका जन्म दिवस ही शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
“शिक्षक दिवस मनाने का यही उद्देश्य है कि कृतज्ञ राष्ट्र अपने शिक्षक राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन के प्रति अपनी असीम श्रद्धा अर्पित कर सके और इसी के साथ अपने समर्थ शिक्षक कुल के प्रति समाज अपना स्नेहिल सम्मान और छात्र कुल अपनी श्रद्धा व्यक्त कर सके।
शिक्षक का दर्द
कहाँ गए वो दिन सुनहरे!
शाला में प्रवेश करते ही,
अभिवादन करते बच्चे प्यारे,
श्यामपट को रंगीन बनाते,
चाॅक से सनी उँगलियों को निहारते,
बच्चों की मस्ती देखते,
खुशी मनाते,खुशी बांटते,
बच्चों संग बच्चे बन जाते,
माँ बन बच्चों को सहलाते,
गुरू बन फिर डांट लगाते,
मित्र बन फिर गले लगाते,
ज्ञान बांटते,मुश्किल सुलझाते,
भविष्य के सपने दिखलाते,
उन्हें सच करने की राह बतलाते,
अनगिनत आशाएँ जगाते,
भाईचारे का सबक सिखलाते।
कहां गए वो दिन सुनहरे!
कब आयेंगे वो दिन उजियारे?
फिर आए वह दिन नया सुनहरा,
फिर से खुले हमारा विद्यालय प्यारा।
फिर से बजे शाला की घंटी प्यारी,
कानों में गूँजे बच्चों की किलकारी।
‘माला पहल’, मुंबई