शिवरात्रि पर कविता
शिव को ध्याने के लिए लो आ गई रात्रि।
मौका मिला है शिव की करने को चाकरी।
शिव को मनाने के लिए बस श्रद्धा चाहिए।
शिव को पाना जो चाहो तो नजरिया चाहिए।
हो मुक्कमल सफ़र अपना और जाए यात्री।
हम जन्म मरण से मुक्त हों और पाएं मोक्ष को।
मंजिल कठिन हो चाहे पर अर्जुन सा लक्ष्य हो।
शिव जी को पा लेना जैसे लग जाए लाटरी।
हर कंकर है शंकर और हर पत्थर श्री राम है।
गोपों के संग वृंदावन में रास रचाए राधेश्याम है।
शिव को डमरू प्यारा है कान्हा को बांसुरी।
अपनी जटाओं में गंगा को शिव ने धरा है।
फिर विष को अपने कंठ में धारण किया है।
हमको भी चरणों में धर लो हे भोले गंगाधरी।
शिव को है प्यारा चिलम धतूरा और रुद्राक्ष,
तप एकांत शंख बिल्व और प्यारा है कैलाश।
भर दो भक्ति से हमारी खाली भिक्षा पात्री।
रखें भरोसा भोले पर जो यहां तक ले आया है।
आगे भी लेकर जाएगा जहां भी लेकर जाना है।
सूर्य सा दो निखार हे भोले दिवाकरी।
कर्ता करे न कर सके शिव करे सो होय,
तीन लोक नौ खंड में तुझसे से बड़ा न कोय।
आज हवा में सुर्खी लाई महाशिवरात्रि।
*सुधीर कुमार*
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