सरस के दोहे -दिलीप कुमार पाठक सरस

सरस के दोहे

1-
जय माता हे शारदे ,मेटो मन का मैल|
हस्त रखा जब शीश पर, गया उजाला फैल||

2-
साफ सफाई जो करे, रहता स्वस्थ निरोग|
तन मन जिसका स्वस्थ है,उसके सारे भोग||

3-
जय जय हिन्दी घर मिला, प्यार मिला भरपूर|
आप सभी इस दास को, करना मत अब दूर||

4-
कूड़ा कूड़ादान में, डाले हर परिवार |
दूर रखो हर गन्दगी, खुशियाँ आतीं द्वार||

5-
दूर प्रदूषण से रहो,कहते सारे लोग|
पेड़ लगाएँ आप हम, स्वागत पुष्प प्रयोग ||

6
खानपान पर ध्यान दें,तन मन रहे निरोग|
करते अच्छे काम जो, नाम लेत जग लोग||

7-
फुलवारी फूली रहे, घर आँगन मम द्वार|
मिलकर हँसकर काट लें, जीवन के दिन चार ||

8-
जीवन जल से है मिला, जल के रूप अनेक|
जल की सत्ता सृष्टि है, सृष्टा जल का एक||

9-
रोग शोक हर दूर हो, मिटे हृदय संताप|
जीवन में हर पल सदा, हँसते रहिए आप ||

10-
स्नान ध्यान पूजा करो, होय सुमंगल भोर|
ईश हाथ हो शीश पर, रहे कृपा की कोर ||

11-
प्रेम प्यास बढती रहे, चढ़े हृदय से शीश|
सीख सकूँ सानिध्य में, नित देना आशीष||

12-
जो करता अभ्यास है, उसका सफल प्रयास|
गणपति के आशीष से, सब सुख होते पास||

दिलीप कुमार पाठक “सरस”

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