सुभाष चंद्र बोस – उपेन्द्र सक्सेना

आजादी के महानायक नेता जी सुभाष चंद्र बोस जी की जयंती (23 जनवरी) पर

उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट

थे सुभाष जी मन के सच्चे, सबने उनको इतना माना।
नेताजी के रूप में उन्हें, सारी दुनिया ने पहचाना।।

सन् अट्ठारह सौ सतानवे, में तेईस जनवरी आयी
तब चौबीस परगने के कौदिलिया ने पहचान बनायी
था सुभाष ने जन्म लिया, माताजी प्रभावती कहलायीं
पिता जानकी नाथ बोस ने, थीं ढेरों बधाइयाँ पायीं

निडर जन्म से थे सुभाष जी, सबने उनका लोहा माना।
कितने भी संकट हों सम्मुख, सीखा नहीं कभी घबराना।।

पिता कटक में चमक रहे थे, बनकर सरकारी अधिवक्ता
वेतन के अतिरिक्त उन्हें तब मिलता था सरकारी भत्ता
उन्हें मानती थी सचमुच उस समय यहाँ अंग्रेजी सत्ता
पुत्र सुभाष कटक से मैट्रिक करके आये थे कलकत्ता

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कलकत्ता से एफ.ए., बी. ए., करके हुए ब्रिटेन रवाना।
और वहाँ आई.सी.एस.कर, सपना पूरा किया सुहाना।।

भारत को आजाद कराने का जब भाव हृदय में जागा
सदी बीसवीं सन् इक्किस में, आई.सी.एस.का पद त्यागा
गए जेल दस बार लगा तब,सोने में मिल रहा सुहागा
कूटनीति से जेल छोड़कर जेलर को कर दिया अभागा

उत्तमचन्द नाम के व्यापारी ने उनको दिया ठिकाना।
और जियाउद्दीन नाम से, सफल हो गया इटली जाना।।

और वहाँ से जर्मन पहुँचे, हिटलर ने भी दिया सहारा
फौज बनी आजाद हिन्द जब,अंग्रेजों को था ललकारा
फिर जापान पहुँचकर उनको, सबका मिला साथ जब न्यारा
आजादी का स्वर मुखरित कर, प्रकट हुए बनकर अंगारा

मैं तुमको आजादी दूँगा, खून भले ही पड़े बहाना।
भाषण सुना जिस किसी ने भी, हो बैठा उनका दीवाना।।

बर्मा की महिलाओं ने आभूषण उन्हें कर दिए अर्पित
मंगलसूत्र उतारा ज्यों ही, आँसू भी हो गए समर्पित
दिल्ली चलो कहा जैसे ही, फौज चल पड़ी होकर गर्वित
अभिवादन ‘जय हिंद’ हो गया कितने भाव हुए थे तर्पित

नेताजी बुन गये यहाँ पर,आजादी का ताना-बाना।
सरल हो गया अंग्रेजों के, हाथों से सत्ता हथियाना।।

रचनाकार -उपमेन्द्र सक्सेना एड.
‘कुमुद- निवास’ बरेली (उ. प्र.)

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