स्वरोजगार तुमको ढूंढना हैं/डीजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”

“डीजेन्द्र कुर्रे की कविता ‘स्वरोजगार तुमको ढूंढना है’ में स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता की प्रेरणा दी गई है। यह कविता युवाओं को स्वरोजगार के महत्व को समझाते हुए उन्हें प्रेरित करती है कि वे अपने सपनों को पूरा करने के लिए खुद को ढूंढें और अपने पैरों पर खड़े हों।”

सारांश:

“स्वरोजगार तुमको ढूंढना है” एक प्रेरणादायक कविता है, जिसमें डीजेन्द्र कुर्रे ने आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन की आवश्यकता को उजागर किया है। कविता में युवाओं को रोजगार के लिए अपने अंदर की क्षमताओं को पहचानने और अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया गया है। यह रचना आज के युग में स्वरोजगार की ओर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता को स्पष्ट करती है।

स्वरोजगार तुमको ढूंढना हैं

ऐसी रोजगार नही चाहिए,
जिसमें राजनीति की बू आती है।
घूसखोर जिसमें पैसा लेते हैं,
और डिग्रीयां देखी नहीं जाती हैं।

पैसों की शान शौकत से वह, 
रोजगार तो हासिल कर लेते हैं ।
समाज में दिशा नहीं दे पाते वह,
समाज में बदनाम हो जाते हैं ।

गरीब घर का हैं वह बालक ,
पढ़ाई में सबसे आगे रहते हैं ।
नौकरी में पैसा ना दे पाने पर,
नौकरी से वंचित रह जाते है।

देश की अर्थव्यवस्था कह रही ,
यह बात बिल्कुल सच्ची है ।
बेरोजगारों की हालत से बढ़िया,
भिखारियों की हालत अच्छी है।

फिर भी पढ़ना मत छोड़ना,
कर्म पर विश्वास तुमको करना हैं।
सरकारी नौकरी न मिले तो क्या?
स्वरोजगार तुमको ढूंढ़ना हैं।

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रचनाकार – डीजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”मिडिल स्कूल पुरुषोत्तमपुर,बसनाजिला महासमुंद (छ.ग.)मो. 8120587822
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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