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  • बेटियाँ हैं रब्ब की दुआओं जैसी / राकेश राज़ भाटिया

    बेटियाँ हैं रब्ब की दुआओं जैसी / राकेश राज़ भाटिया

    “बेटियाँ हैं रब्ब की दुआओं जैसी” – राकेश राज़ भाटिया द्वारा लिखी गई यह खूबसूरत कविता बेटियों के अनमोल होने का एहसास कराती है। बेटियाँ वो उपहार हैं, जो जीवन में खुशियों और दुआओं की सौगात लाती हैं।

    बेटियाँ हमारी जिंदगी में खुशियाँ लाती हैं, जो हमें आशीर्वादित करती हैं और हमारे जीवन को आनंद और प्रेम से भर देती हैं। उनकी मासूमियत और चुलबुली मुस्कान हर दिन को एक नया उत्सव बना देती है।

    अन्तर्राष्ट्रीय बेटी दिवस पर कविता

    बेटियाँ हैं रब्ब की दुआओं जैसी


    गर्म मौसम में भी हैं शीत हवाओं जैसी।
    ये बेटियाँ तो हैं, रब्ब की दुआओं जैसी।।

    महक उठें तो ये  गुलों का काम करती हैं,
    चहकती हैं तो चिड़ियों का काम करती हैं,
    एक परिवार तक नहीं रहती है ये सीमित,
    घरों को जोड़ने में पुलों का काम करतीं हैं।
    शहर की भीड़ को बना देती हैं गाँवों जैसी।
    ये बेटियाँ तो हैं, रब्ब की दुआओं जैसी,

    लाडली होती जाती है जैसे-२ बड़ी होतीं हैं,
    कड़े इन्तिहानों में तो  ये और कड़ी होती हैं,
    बन जाती हैं सहारा अक्सर  दो घरों का ये,
    सुख दुःख में साथ आपनों के खड़ी होतीं है,
    असर करतीं हैं बातें इनकी दवाओं जैसी।
    ये बेटियाँ तो हैं, रब्ब की दुआओं जैसी।

    वो लोग जो यहाँ यूँ दोहरी निगाह रखते हैं,
    जैसे दिल में छिपा कर  वो गुनाह रखते हैं,
    दुआएँ माँगने जाते है दर पर देवी के मगर,
    अपने मन में  सिर्फ बेटे की  चाह रखते हैं,
    अपने मन वो जैसे यूँ कोई गुनाह रखते है,
    इबादतें उनकी तो है राज़ गुनाहों जैसी।
    ये बेटियाँ तो हैं, रब्ब की दुआओं जैसी।।

    राकेश राज़ भाटिया
    थुरल-काँगड़ा हिमाचल प्रदेश
    सम्पर्क- 9805145231,  7018848363