Tag: करवा चौथ के अवसर पर कविता

  • सुहागिनों का प्रेम और आस्था का त्यौहार /  डॉ एन के सेठी

    सुहागिनों का प्रेम और आस्था का त्यौहार /  डॉ एन के सेठी


    इस दोहों की श्रृंखला में करवा चौथ के त्यौहार का सुंदर चित्रण किया गया है, जिसमें सुहागिनें अपने पति की दीर्घायु और सुखमय जीवन की कामना के लिए व्रत रखती हैं। दिनभर की पूजा-अर्चना के बाद, वे चंद्रमा का दर्शन कर व्रत खोलती हैं और अपने पति के प्रति अमिट प्रेम और समर्पण को प्रकट करती हैं। इन दोहों में त्यौहार की परंपराएं, सौभाग्य और अखंड प्रेम की भावना को भावुकता से व्यक्त किया गया है।

    सुहागिनों का प्रेम और आस्था का त्यौहार



    आया करवा चौथ है, खुशियों का त्यौहार।
    इसे मनाती सुहागिनें, पाए पति का प्यार।।

    पति  की आयु दीर्घ हो,  करे कामना नार।
    करती व्रत वह चौथ का,पूजे वह भरतार।।

    धूप  दीप   नैवेद्य  से,   करती  पूजन  नार।
    अक्षत  रोली  साथ  में, आरत लेय  उतार।।

    दर्शन करती पीय का, फिर लेती व्रत खोल।
    पति पत्नी का प्रेम ही, होता  है  अनमोल।।

    सजी धजी   है  नारियाँ, लगे  अप्सरा  लोक।
    मुख उनका ज्यों चंद्रमा,फैला जग आलोक।।

    व्रत   खोले   वे   रात  में,  लेती   चंद्र  निहार।
    देती  अर्घ्य  सुहागिनें,  सुखी  हो  घर संसार।।

    माँ  अखंड  सौभाग्य हो, विनय करे बस एक।
    प्रेम  न  कम  हो पीय का, यही कामना नेक।।


                               *© डॉ एन के सेठी*

  • करवा चौथ का दिन / राकेश राज़ भाटिया

    करवा चौथ का दिन / राकेश राज़ भाटिया


    करवा चौथ भारतीय संस्कृति में सुहागिनों के प्रेम और आस्था का प्रतीक पर्व है, जहां हर सुहागन सोलह श्रृंगार कर अपने पति की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए व्रत रखती है। इस दिन का विशेष महत्व चांद के दीदार से जुड़ा होता है, जो जीवनसाथी के प्रति समर्पण और प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इस व्रत में सुहागिनें अपनी भारतीय परंपराओं और रीति-रिवाजों को निभाते हुए रिश्तों की मिठास और मजबूती को कायम रखती हैं।

    करवा चौथ का दिन



    आज हर सुहागन के सोलह श्रृंगार का दिन है।
    यह करवा चौथ तो  चांद के दीदार का दिन है।

    हाथों में चूड़ी पहने और वो पाँव में पायल डाले,
    सुर्ख होंठों पे लाली और आँखों में काजल डाले,
    भारतीय परम्परा और रीति-रिवाज निभाने को,
    संवरती है हर सुहागन यूँ सिर पर आंचल डाले,
    आज हर सुहागन की प्रीत और प्यार का दिन है।
    यह करवा चौथ तो चांद के दीदार का दिन है।।

    नियम निभाती है हर सुहागन यूँ अपने व्रत का,
    नाश करने को पति पर आई हरेक आफत का,
    वो मांगती है दुआ पति की लम्बी उम्र के लिये,
    जब छलनी में रखकर एक दीया वो चाहत का,
    उसी भारतीय विरासत के  विस्तार का दिन है।
    यह करवा चौथ तो चांद के दीदार का दिन है।।

    बहुत ही अनूठी मेरे देश के इस पर्व की कहानी,
    रिश्ते निभाने की ये परम्पराएँ हैं बड़ी ही पुरानी,
    तप यह करके  बन जाती है  प्रेयसी साजन की,
    सुहागन पीकर यूँ पति के हाथों से दो घूँट पानी।
    अटूट रिश्तों के सम्मान एवं सत्कार का दिन है।
    यह करवा चौथ तो चांद के दीदार का दिन है।।

    -राकेश राज़ भाटिया
    थुरल-काँगड़ा  हिमाचल प्रदेश
    सम्पर्क- 9805145231,  7018848363

  • पति-व्रता की प्रार्थना / शिवराज सिंह चौहान

    पति-व्रता की प्रार्थना / शिवराज सिंह चौहान

    यह कविता एक पतिव्रता स्त्री की भावनाओं और समर्पण को दर्शाती है, जो करवा चौथ के व्रत के दौरान अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती है। वह पूरे दिन व्रत रखती है, सोलह श्रृंगार करती है, मां पार्वती की कथा सुनती है और अपने सुहाग की सलामती की प्रार्थना करती है। चांद से विनती करती है कि वह जल्दी से आ जाए ताकि वह व्रत खोल सके और अपने पति के साथ अपना जीवन सुखमय बना सके।

    पति-व्रता की प्रार्थना

    पतिव्रता की पत रख लेना,
                     अपना धर्म निभाना रे।
    चंदा तुझसे यही गुजारिश,
                    जल्दी से आ जाना रे।।

    स्नान ध्यान कर सुबह सवेरे,
                   सब सोलह श्रृंगार किये।
    पूजा पाठ, सुन कथा कहानी,
                 मां पार्वती का प्यार लिये।।
    निराहार, निर्जल व्रत रखकर,
                      दिन भर पार पुगाना रे…

    एक सुहागन मांग यही है,
                       मेरा अमर सुहाग रहे।
    प्रियतम संग रह, प्रिया का भी,
                   सदा अखंड सौभाग रहे।।
    खिलता पारिवारिक बाग रहे,
                        चांदनी वो फैलाना रे…

    सती अनसूया, सावित्री सी,
                       नवदुर्गा अवतार है ये।
    रिश्तो के ताने-बाने में,
                  सबसे सुंदर किरदार है ये।।
    इक प्यार भरा संसार है ये,
                    यह सारे जग ने जाना रे…

    जब तक तू ना आएगा वो,
                    छत पर खड़ी निहारेगी।
    छलनी में से दर्श देखकर,
                      आरती मेरी उतारेगी।।
    जल अर्पण कर मेरे हाथों से,
                   फिर खायेगी वो खाना रे…
    चंदा तुझसे यही गुजारिश,
                      जल्दी से आ जाना रे…

                    # शिवराज सिंह चौहान
                                नान्धा, रेवाड़ी
                                   (हरियाणा)

  • करवाचौथ पर हिंदी कविता

    करवाचौथ पर हिंदी कविता

    करवाचौथ पर हिंदी कविताकरवा चौथ हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह भारत के जम्मू, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाने वाला पर्व है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह पर्व सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ मनाती हैं। यह व्रत सवेरे सूर्योदय से पहले लगभग 4 बजे से आरंभ होकर रात में चंद्रमा दर्शन के उपरांत संपूर्ण होता है।

    करवा चौथ पर कविता

    करवा चौथ पर गीत- उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट

    जीवन हो उनका मंगलमय, कभी न उनके लगें खरोचें
    करवा चौथ मनाती हैं जो, वे अपने पति का हित सोचें।

    इस दुनिया में पति से बढ़कर, कोई कहीं न होता दूजा
    उसको ही भगवान मानकर, करती हैं वे उसकी पूजा

    पति की सेवा में जो तत्पर, कभी न वे उसका धन नोचें
    करवा चौथ मनाती हैं जो, वे अपने पति का हित सोचें।

    इस व्रत के पीछे सदियों से, चलती आई एक कहानी
    देख चंद्रमा को पत्नी फिर, पति के हाथों पीती पानी

    बढ़ता प्यार खूब आपस में, उनके बीच न लड़तीं चोचें
    करवा चौथ मनाती हैंं जो, वे अपने पति का हित सोचें।

    झगड़ा होता नहीं कभी जब, फिर क्यों चले मुकदमेंदारी
    क्यों तलाक की नौबत आए, और मचे क्यों मारा-मारी

    तालमेल हो संभव तब ही, समाधान में हों जब लोचें
    करवा चौथ मनाती हैं जो, वे अपने पति का हित सोचें।

    सब आनंदित होते घर में, अपनापन जब रहता जारी
    धन- दौलत की कमी नहीं हो, लगे न फिर कोई बीमारी

    जीवन के पथ पर जो बढ़ते, उन चरणों में क्यों हों मोचें
    करवा चौथ मनाती हैं जो, वे अपने पति का हित सोचें।

    रचनाकार -उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
    ‘कुमुद -निवास’
    बरेली (उत्तर प्रदेश)
    मोबा.- 98379 44187

    करवाचौथ पर हिंदी कविता- डी कुमार अजस्र

    मइया करवा मइया ,
    मइया ओ करवा मइया ।

    करवा मइया तेरी मेहरबानी रहे ,
    मेरे सजना की जीवन रवानी रहे ।

    सात फेरों के थे जो वचन वो ,
    मिलके निभते रहे, तेरी जय हो ।
    मांग सिंदूर भरे,जीवन संग-संग चले ।
    मेरी धड़कन उन्हीं की दीवानी रहे ।
    दीवानी रहे…मइया करवा मइया
    करवा मइया तेरी मेहरबानी रहे ,
    मेरे सजना की जीवन रवानी रहे ।

    मेरी सुनले तू अब मोरी मइया ,
    मेरे जीवन की तू ही खेवइया।
    जीवन ये भी रहे ,भले फिर से मिले ।
    मेरी सजना के संग ही कहानी रहे ।
    कहानी रहे…मइया करवा मइया
    करवा मइया तेरी मेहरबानी रहे ,
    मेरे सजना की जीवन रवानी रहे ।

    माह कातिक का जब-जब भी आये,
    करके पूजन तुझे हम मनाएं ,
    सजना संग-संग रहे ,हर सुहागन कहे ।
    मरते दम तक वो राजा की रानी रहे ।
    वो रानी रहे…..मइया करवा मइया
    करवा मइया तेरी मेहरबानी रहे ,

    मेरे सजना की जीवन रवानी रहे ।
    मइया करवा मइया ,
    मइया ओ करवा मइया ।

    *डी कुमार–अजस्र(दुर्गेश मेघवाल,बून्दी/राज)*

    करवाचौथ पर हिंदी कविता

    करवा चौथ के व्रत का वह पल , बड़ा सुहाना लगता है ।
    जमीं के चांद का आसमान के चांद से मिलने का पल , बड़ा सुहाना लगता है।
    पति प्रेम से लिप्त यह व्रत , मन को लुभाना लगता है।
    करवा चौथ के व्रत का वह पल , बड़ा सुहाना लगता है।


    किए सोलह श्रृंगार नारियां जब छतों में आती हैं ,
    चांद को देखने का वह पल , बड़ा सुहाना लगता है।
    हाथों में मेहंदी , आंखो पे काजल, गले में हार का दीदार सुहाना लगता है।
    नई चूड़ी , नए कंगना , नवीनता का सारा श्रृंगार सुहाना लगता है।


    पहन कर चुनरी सतरंगी , पिया को रिझाना लगता है।
    कर सोलह श्रृंगार सज कर , पिया के मन को लुभाना लगता है।
    कार्तिक की चतुर्थी चांदनी में , मुझे पिया चांद सी बनना लगता है।
    निर्जल व्रत रखकर , पिया की उम्र बढ़ाना लगता है।


    करवा चौथ के व्रत का वह पल , बड़ा सुहाना लगता है।
    आसमान का एक चांद भी शरमा जाता है, जमीं के लाखों चांद को देख कर,
    शरमाने की अदा का वह पल बड़ा सुहाना लगता है।


    प्रकती भी देती है जमीं के देवियों का साथ,
    सर्दी की हल्की बौछार का वह पल, बड़ा सुहाना लगता है।
    अखंड सुहाग रहे सभी मां – बहनों का,
    खुदा से दुआ दोहराना लगता है ।
    करवा चौथ के व्रत का वह पल, बड़ा सुहाना लगता है।।

    चांद का साया

    ए चांद दीखता है तुझमें,
                 मुझे मेरे चांद का साया है।
    हुआ दीदार जो तेरा तो
             ये चांद भी अब मुस्काया है।।

    सदा सुहागन चाहत दिल में,
             पति हित उपवास किया मैंने।
    जीवन भर साजन संग पाऊं,
                मन में एहसास किया मैंने।।
     जितना जब मांगा है तुमसे,
                  उससे ज्यादा ही पाया है…

    माही की है रची महावर,
                          मंगल सूत्र पहना है।
    कुमकुम मांग सजाई है,
                    सोलह श्रंगारी गहना है।।
    चौथ कहानी सुनी आज,
              और करवा साथ सजाया है…

    नहीं करो तुम लुक्का छिप्पी,
            मुझको बिल्कुल नहीं भाती ये।
    बैरन बदली को समझा दो,
                जले पर नमक लगाती ये।।
    हुई इंतेहा इंतजार की,
                 बीते नहीं वक्त बिताया है…

    सुबह से लेकर अभी तलक,
              मैं निर्जल और निराहार रही।
    अंत समय तक करूं चतुर्थी,
                     खांडे की ही धार सही।।
    चांद रहो तुम सदा साक्षी,
              जब पिया ने व्रत खुलाया है…

                      शिवराज चौहान
                   नांधा, रेवाड़ी (हरियाणा)

    करवा चौथ-सुचिता अग्रवाल

    कार्तिक चौथ घड़ी शुभ आयी। सकल सुहागन मन हरसायी।।
    पर्व पिया हित सभी मनाती। चंद्रोदय उपवास निभाती।।

    करवे की महत्ता है भारी। सज-धज कर पूजे हर नारी।।
    सदा सुहागन का वर हिय में। ईश्वर दिखते अपने पिय में।।

    जीवनधन पिय को ही माना। जनम-जनम तक साथ निभाना।।
    कर सौलह श्रृंगार लुभाती। बाधाओं को दूर भगाती।।

    माँग भरी सिंदूर बताती। पिया हमारा ताज जताती।।
    बुरी नजर को दूर भगाती। काजल-टीका नार लगाती।।

    गजरे की खुशबू से महके। घर-आँगन खुशियों से चहके।।
    सुख-दुख के साथी बन जीना। कहता मुँदरी जड़ा नगीना।।

    साड़ी की शोभा है न्यारी। लगती सबसे उसमें प्यारी।।
    बिछिया पायल जोड़े ऐसे। सात जनम के साथी जैसे।।

    प्रथा पुरानी सदियों से है। रहती लक्ष्मी नारी में है।।
    नारी शोभा घर की होती। मिटकर भी सम्मान न खोती।।

    चाहे स्नेह सदा अपनों से। जाना नारी के सपनों से।।
    प्रेम भरा संदेशा देता। पर्व दुखों को है हर लेता।।

    उर अति प्रेम पिरोये गहने। सारी बहनें मिलकर पहने।।
    होगा चाँद गगन पर जब तक। करवा चौथ मनेगी तब तक।।

    डॉ.सुचिता अग्रवाल “सुचिसंदीप”
    तिनसुकिया, असम

    करवाचौथ पर हिंदी कविता

      ( सरसी छंद)  

    आज सजी है देखो नारी, कर सोलह श्रृंगार ।

    करे आरती पूजा करके , पाने पति का प्यार ।।  

    पायल बाजे रुनझुन रुनझुन , बिन्दी चमके माथ ।

    मंगलसूत्र गले में पहने , लगे मेंहदी हाथ ।।  

    करवा चौथ लगे मन भावन, आये बारम्बार ।

    आज सजी है देखो नारी,  कर सोलह श्रृंगार ।।  

    रहे निर्जला दिनभर सजनी , माँगे यह वरदान ।

    उम्र बढे हर दिन साजन का , बने बहुत बलवान ।।  

    छत के ऊपर देखे चंदा , खुशियाँ मिले अपार ।

    भोली सी सूरत को देखे , सजन लुटाए प्यार ।।  

    सुखी रहे परिवार सभी का, जुड़े ह्रदय का तार।

    आज सजी है देखो नारी,  कर सोलह श्रृंगार ।।    

    *महेन्द्र देवांगन माटी*

    *पंडरिया छत्तीसगढ़*

    हूँ करवा मैं

    मेरे चाँद में
    बहत्तर हैं छेद
    हूँ करवा मैं
    पति की बढ़े उम्र
    हों दीर्घजीवी
    जब भी वो चेतेंगे
    देख के त्याग
    बनेंगे पत्नीव्रता
    खुलेगा भाग्य
    मेरा मेरे बच्चों का
    होगा उद्धार
    संवरेगा संसार
    मिलेगा प्यार
    करवा चौथ व्रत
    होगा सफल
    चांद मेरा धवल
    यही मेरा संबल।।

    भवानीसिंग राठौड़

    करवा चौथ व्रत पर नारी चिंतन

    छटा तुम्हारी शिवा सुहानी।।
    करवा चौथ मात व्रत मेरा।
    करती पूजन गौरी तेरा।।१

    चंदा दर्श पिया सन करना।
    मात कामना मम मन धरना।।
    रहे अटल अहिवात हमारा।
    मिले सदा आशीष तुम्हारा।।२

    पति जीवन हित जीवन अपना।
    परिजन सुख चाहत नित सपना।।
    रहे दीर्घ जीवी पति देवा।
    नित्य करूँ माँ प्रभु की सेवा।।३

    जय जय माँ गौरी जग माई।
    आज तुम्हारे द्वारे आई ।।
    रहूँ सुहागिन ऐसा वर दे।
    घर में खुशियाँ मंगल कर दे।।४

    चंद्र चौथ के साक्ष्य हमारे।
    पति परमेश्वर प्राण पियारे।।
    दर्श तुम्हें फिर नीर चढाकर।
    पति सन पावन प्रीत बढ़ाकर।५

    सुनती कथा पूजती गवरी।
    पति, शशि चौथ दर्श हित सँवरी।।
    पति सन बैठ खोलती व्रत को।
    जनम जनम पालूँ पति सत को।।६

    बाबू लाल शर्मा, बौहरा