तुझे कुछ और भी दूँ !/ रामअवतार त्यागी
तन समपित, मन समर्पित
और यह जीवन समर्पित
चाहता हूँ, देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ!
माँ ! तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन
किंतु इतना कर रहा फिर भी निवेदन,
थाल में लाऊँ सजाकर भाल जब
स्वीकार कर लेना दयाकर वह समर्पण !
गान अर्पित, प्राण अर्पित
रक्त का कण-कण समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ!
माँज दो तलवार को, लाओ न देरी
बाँध दो कसकर कमर पर ढाल मेरी
भाल पर मल दो चरण की धूल थोड़ी
शीश पर आशीष की छाया घनेरी
स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित
आयु का क्षण-क्षण समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।
तोड़ता हूँ मोह का बंधन, क्षमा दो,
गाँव मेरे, द्वार-घर आँगन क्षमा दो,
आज बाएँ हाथ में तलवार दे दो,
और सीधे हाथ में ध्वज को क्षमा दो !
ये सुमन लो, यह चमन लो
नीड़ का तृण-तृण समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती तुझ कुछ और भी दूँ!