Tag: भोलेनाथ पर कविता

  • हर हर महादेव पर कविता

    हर हर महादेव पर कविता – शंकर या महादेव सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव महादेव भी कहते हैं। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि नामों से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है।

    हर हर महादेव पर कविता

    bhagwan Shiv
    शिव पर कविता


    हर-हर महादेव जय-जय!
    हर-हर महादेव जय-जय!
    बढ़े चलो पग-पग निर्भय!!


    याद करो तुम अपना गौरव,
    याद करो तुम अपना वैभव,
    याद करो तुम अपना उद्भव,
    अजर अमर हे मृत्युंजय!
    हर-हर महादेव जय-जय!!

    याद करो इतिहास पुरातन,
    याद करो विश्वास पुरातन,
    अपने पुण्य-प्रयास पुरातन,
    जहाँ तुम्हारी खड़ी विजय!
    हर-हर महादेव जय-जय!!


    आदि सृष्टि के तुम निर्माता,
    वेद उपनिषद के तुम दाता,
    तुम भारत के भाग्य विधाता,
    तुम भविष्य के स्वर्णोदय!
    हर-हर महादेव जय-जय!!

    जागो मनु महर्षि के वंशज,
    जागो सूर्य चन्द्र के अंशज,
    जागो हे दिलीप, जागो अज,
    जागो हे निर्भय, दुर्जय!
    हर-हर महादेव जय-जय!!


    जागो राम, कृष्ण, हे शंकर
    जागो भीम, भीष्म, प्रलयंकर,
    जागो मेरे पार्थ धनुर्धर,
    जागो हे जीवन की जय!
    हर-हर महादेव जय-जय!!

    जागो चन्द्रगुप्त के गायक,
    विक्रम के ध्वज के उन्नायक,
    आर्यभूमि जनगण नायक,
    नवजीवन हो आज उदय!
    हर-हर महादेव जय-जय!!


    जागो हे अतीत के तपधन,
    जागो जीवन में जय के क्षण,
    जागो क्षत्रिय के पावन प्रण,
    मान रहे या प्राण प्रलय,
    हर-हर महादेव जय-जय!!


    जन-जन में हो आज संगठन,
    मन-मन में हो आज संगठन,
    जीवन में हो आज संगठन,
    आज सभी विघटन हो क्षय!
    हर-हर महादेव जय-जय!!


    कोटि-कोटि कंठों का गर्जन,
    कोटि-कोट प्राणों का अर्चन,
    कोटि-कोटि शीशों का अर्पन,
    साथ तुम्हारे है निश्चय
    हर-हर महादेव जय-जय!!

    खड़ी आज भी शंका अविचल,
    खड़ी आज भी लंका अविचल,
    बजे तुम्हारा डंका अविचल,
    राम-राज्य हो पुन: उदय!
    हर-हर महादेव जय-जय!!

  • हे दीन दयालु हे दीनानाथ- मनीभाई नवरत्न

    kavita

    हे दीन दयालु हे दीनानाथ
    हे दीन दयालु, हे दीनानाथ !
    दीन की रक्षा करलें मांगे वरदान।


    हे कृपालु ,हे भोलेनाथ!


    हे कृपालु , हे भोलेनाथ!
    हीन की रक्षा कर ले मांगे वरदान ।


    ऊंची चोटी पर तेरा वास है ।
    हर तरफ शांति, उल्लास है।


    छायी रहे ऐसे सदा, अमन से ये जहान।

    मांगे वरदान। हे दीन दयालु….


    बड़े भरोसे हैं तुझ पे प्रभु।

    तू ही तन मन में तेरा ध्यान करूं।
    तू ही विधि है तू ही विधान ।।

    मांगे वरदान। हे दीन दयालु….


    सेवक हैं तेरे, दें सेवा का मौका।
    मन में उमंग , भर दें आशा का झोंका।


    तेरे लिए तो प्रभु, ऊंच नीच सब समान।।

    मांगे वरदान। हे दीन दयालु….

    🖋मनीभाई नवरत्न

  • शिव स्तुति

    प्रस्तुत कविता शिव स्तुति भगवान शिव पर आधारित है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि नामों से भी जाना जाता है।

    इन्द्रवज्रा/उपेंद्र वज्रा/उपजाति छंद

    शिव स्तुति

    परहित कर विषपान, महादेव जग के बने।
    सुर नर मुनि गा गान, चरण वंदना नित करें।।

    माथ नवा जयकार, मधुर स्तोत्र गा जो करें।
    भरें सदा भंडार, औघड़ दानी कर कृपा।।

    कैलाश वासी त्रिपुरादि नाशी।
    संसार शासी तव धाम काशी।
    नन्दी सवारी विष कंठ धारी।
    कल्याणकारी शिव दुःख हारी।।१।।

    ज्यों पूर्णमासी तव सौम्य हाँसी।
    जो हैं विलासी उन से उदासी।
    भार्या तुम्हारी गिरिजा दुलारी।
    कल्याणकारी शिव दुःख हारी।।२।।

    जो भक्त सेवे फल पुष्प देवे।
    वाँ की तु देवे भव-नाव खेवे।
    दिव्यावतारी भव बाध टारी।
    कल्याणकारी शिव दुःख हारी।।३।।

    धूनी जगावे जल को चढ़ावे।
    जो भक्त ध्यावे उन को तु भावे।
    आँखें अँगारी गल सर्प धारी।
    कल्याणकारी शिव दुःख हारी।।४।।

    माथा नवाते तुझको रिझाते।
    जो धाम आते उन को सुहाते।
    जो हैं दुखारी उनके सुखारी।
    कल्याणकारी शिव दुःख हारी।।५।।

    मैं हूँ विकारी तु विराग धारी।
    मैं व्याभिचारी प्रभु काम मारी।
    मैं जन्मधारी तु स्वयं प्रसारी।
    कल्याणकारी शिव दुःख हारी।।६।।

    द्वारे तिहारे दुखिया पुकारे।
    सन्ताप सारे हर लो हमारे।
    झोली उन्हारी भरते उदारी।
    कल्याणकारी शिव दुःख हारी।।७।।

    सृष्टी नियंता सुत एकदंता।
    शोभा बखंता ऋषि साधु संता।
    तु अर्ध नारी डमरू मदारी।
    पिनाक धारी शिव दुःख हारी।८।।

    जा की उजारी जग ने दुआरी।
    वा की निखारी प्रभुने अटारी।
    कृपा तिहारी उन पे तु डारी।
    पिनाक धारी शिव दुःख हारी।९।।

    पुकार मोरी सुन ओ अघोरी।
    हे भंगखोरी भर दो तिजोरी।
    माँगे भिखारी रख आस भारी।
    पिनाक धारी शिव दुःख हारी।।१०।।

    भभूत अंगा तव भाल गंगा।
    गणादि संगा रहते मलंगा।
    श्मशान चारी सुर-काज सारी।
    पिनाक धारी शिव दुःख हारी।।११।।

    नवाय माथा रचुँ दिव्य गाथा।
    महेश नाथा रख शीश हाथा।
    त्रिनेत्र थारी महिमा अपारी।
    पिनाक धारी शिव दुःख हारी।।१२।।

    करके तांडव नृत्य, प्रलय जग में शिव करते।
    विपदाएँ भव-ताप, भक्त जन का भी हरते।
    देवों के भी देव, सदा रीझो थोड़े में।
    करो हृदय नित वास, शैलजा सँग जोड़े में।
    रच “शिवेंद्रवज्रा” रखे, शिव चरणों में ‘बासु’ कवि।
    जो गावें उनकी रहे, नित महेश-चित में छवि।।

    (छंद १ से ७ इंद्र वज्रा में, ८ से १० उपजाति में और ११ व १२ उपेंद्र वज्रा में।)
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    लक्षण छंद “इन्द्रवज्रा”

    “ताता जगेगा” यदि सूत्र राचो।
    तो ‘इन्द्रवज्रा’ शुभ छंद पाओ।

    “ताता जगेगा” = तगण, तगण, जगण, गुरु, गुरु
    221 221 121 22
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    लक्षण छंद “उपेंद्रवज्रा”

    “जता जगेगा” यदि सूत्र राचो।
    ‘उपेन्द्रवज्रा’ तब छंद पाओ।

    “जता जगेगा” = जगण, तगण, जगण, गुरु, गुरु
    121 221 121 22
    **************
    लक्षण छंद “उपजाति छंद”

    उपेंद्रवज्रा अरु इंद्रवज्रा।
    दोनों मिले तो ‘उपजाति’ छंदा।

    चार चरणों के छंद में कोई चरण इन्द्रवज्रा का हो और कोई उपेंद्र वज्रा का तो वह ‘उपजाति’ छंद के अंतर्गत आता है।
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    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया

  • शिव की महिमा

    प्रस्तुत कविता शिव की महिमा भगवान शिव पर आधारित है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि नामों से भी जाना जाता है।

    शिव की महिमा


    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’
    ओ मेरे भोले, तू तो करे नंन्दी की सवारी।
    मेरे भोले भण्डारी, तू तो है एक विषधारी।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’
    ओ मेरे भोले, तेरी महिमा है जग में सबसे न्यारी।
    मेरे भोले भण्डारी, तुझे तो हैं भांग सबसे प्यारी।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’
    ओ मेरे भोले, तू तो पी जाये विष का प्याला।
    तेरा जग से है नाता सबसे निराला।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’
    ओ मेरे भोले, तेरी भांग घोंघट-घोंघट हाथ में ठेक पड़ गयी।
    अब तो तेरी भांग मुझे भी चढ़ गयी।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’
    ओ मेरे भोले, संसार का हर प्राणीे तेरे आगे हो जाये नतमस्तक।
    तेरे द्वार से खाली हाथ न गया कोई आज तक।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’

    ओ मेेरे भोले, कैलाश पर बैठे तुम लगते हो निराले।
    इस धरा पर तुम ही हो सबके रखवाले।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’
    ओ मेरे भोले, तेरी भंाग घोंघट-घांेघट हाथों में पड गये छाले।
    मेरे भोले भण्डारी तुम तो हो गये हो विष के प्याले।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’
    ओ मेरे भोले, तुम ही हो मेरे अन्तर्यामी।
    तुम ही हो समस्त जगत के स्वामी।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’
    ओ मेरे भोले, तुम ही हो जग के पालनहार।
    भोले बस तेरा ही मैं ध्यान करू बारम्बार।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’
    ओ मेरे भोले, तेरी बारात के हैं अजब ठाट निराले।
    जिसमें हर कोई बोले बम बम बोले।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’
    ओ मेरे भोले, तेरी शरण में लोटा भरकर दूध जो चढावे।
    भोले वो तो तेरी सासों में ही ठहर जावे।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’
    ओ मेरे भोले, इक कन्या कुँवारी जो तेरे सौलह सोमवार व्रत रख लियेे।
    उसको तो तेरी असीम कृपा से अच्छा वर मिल जाये।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’
    ओ मेरे भोले, तुम तो है पशु-पक्षियों के नाथ।
    तुम जन-जन के हृदय मे बसे हो मेरे कैलाशनाथ।।
    ‘‘मैं तेरी भांग घोंघट-घोंघट हारी’’


    श्रीमती मोनिका वर्मा
    जिला-आगरा, उत्तर प्रदेश

  • आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया

    आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    भूत बनकर बैताल संग भोले की बारात में जायंेगे
    भोले की बरात में नाचेंगे, गायेंगे और खूब धमाल मचाऐंगे।।
    ‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’
    हे मेरे भोले, तेरे गले में होगा लिपटा होगा नाग।
    जिसको देखकर हर बाराती में लग जायेगी नाचने की आग।।
    ‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’
    तू तो बारात में पी जायेगा बिष का प्याला।
    और तू बन जायेगा जगत का रखवाला।
    ‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’
    हे मेरे शिव शंकर कैलाश पर्वत वाले।
    तुम ही बने हो सबके रखवाले।।
    ‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’
    भांग पीकर तेरा रूप हो जाये निराला।
    तू अपने भक्तों पर हो जाये मतवाला।।
    ‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’
    तेरी बरात में सब पर चढ गयी भांग ।
    तूने मेरी सबके सामने भर दी माँग।।
    ‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’
    पीकर भांग तूने जमा लिया, बरात में अपना रंग
    आज तो मैं साथ जाऊँगी तेरे ही संग।।
    ‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’
    अगर तेरे भक्तों को मिल जाये तेरे चरणों की धूल।
    फिर मैं तुमको कभी नहीं पाऊँगी भूल।।
    ‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’
    जिसने भी मेरे भोले पर बेलपत्र और घतूरा चढ़ाया।
    उसका इस संसार में कोई भी कुछ भी न बिगाड़ पाया।।
    ‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’

    धर्मेन्द्र वर्मा (लेखक एवं कवि)
    जिला-आगरा, राज्य-उत्तर प्रदेश