मधुर – मृदु बोल संक्रांति पर , तिल – गुड़ – लड्डू के खाओ मिलजुलकर सभी प्रेम – प्यार , समता , सौहार्द बढ़ाओ महापर्व संक्रांति लाए सदा , खुशहाली चहुँ ओर , पतंग उड़ाओ , शुभकामनाएँ लेते – देते जाओ ।
आया – आया करो स्वागत , पर्व संक्रांति का महान सपने ऊँचे सजाकर तुम , छू लो विस्तृत आसमान आशाओं की उड़े पतंग , थामो विश्वासों की डोर , पुण्य कमाओ आज सभी , देकर प्रेम से कुछ भी दान ।
कितना बढ़िया पावन , मनमोहक है , खुशी का त्योहार अफ़सोस ! आता नहीं मनोहर , यह त्योहार बार – बार ख़ुशबू ही ख़ुशबू फैली जा रही , अब तो चारों ओर , गन्ने – रस की खीर , तिल – गुड़ के लड्डू होंगे तैयार ।
अन्य राज्यों के साथ अब तो , पंजाब भी सराबोर गूँजता जा रहा लोहड़ी के , संगीत का मधुर शोर सुन्दर मुंदरिए मनोहर गाना , सबको ही है भाता , भंगड़े – गिद्दे के साथ , थामते सब पतंग की डोर ।
ठिठुरन सी लगे , सुबह के हल्के रंग रंग में । जकड़न भी जैसे लगे , देह के हर इक अंग में ।।
उड़ती सी लगे, धड़कन आज आकाश में। डोर भी है हाथ में, हवा भी है आज साथ में।
पर कागजी तितली….. लगी सहमी सी उड़ने की शुरुआत में । फैलाये नाजुक पंख , थामा डोर का छोर… हाथ का हुआ इशारा, लिया डोर का सहारा … डोली इधर से उधर, गयी नीचे से ऊपर भरी उमंग से , उड़ने लगी जब हुई उड़ती तितलियों के , साथ में , बतियाती जा रही है , पंछियों के पँखों से …. होड़ सी ले रही है, ज्यों आसमानी रंगो से हुई थोड़ी अहंकारी, जब देखी अपनी होशियारी । था दृश्य भी तो मनोहारी, ऊँची उड़ान थी भारी ।
डोर का भी रहा सहारा , हाथ करता रहा इशारा , तभी लगी जाने किसकी नजर , एक पल में जैसे थम गया प्रहर , लग रहे थे तब हिचकोले , यों लगा जैसे संसार डोले ।
डोर से डोर थी , अब कट गयी । इशारे की बिजली भी , झट से गयी । अब तो हवा भी न दे पायी सहारा घड़ी दो घड़ी का था , अब खेल सारा । ऊँची ही ऊँची उड़ने वाली , अब नीचे ही नीचे आयी । जो आँखे मदमा रही थी , अब तक….. उनमें अंधियारी थी छायी ।
तभी उसे लगा , अचानक एक तेज झटका डोर लगी तनी सी, लगे ऐसा जैसे मिल गया , जो सहारा था सटका। डोर का पुनः मिल रहा था , ‘ अजस्र ‘ सहारा । हाथ और थे पर , मिल रहा था बेहतर इशारा । फिर उडी आकाश में , तब बात समझ ये आई बिना सहारे ,बिना इशारे , न होगी आसमानी चड़ाई । जीवन सार समझ आया तो, वो हवा में और अच्छे से लहराई।
✍️✍️ *डी कुमार –अजस्र (दुर्गेश मेघवाल, बून्दी/राज.)
14 जनवरी के बाद से सूर्य उत्तर दिशा की ओर अग्रसर (जाता हुआ) होता है। इसी कारण इस पर्व को ‘उतरायण’ (सूर्य उत्तर की ओर) भी कहते है। और इसी दिन मकर संक्रान्ति पर्व मनाया जाता है. जो की भारत के प्रमुख पर्वों में से एक है।
सुमित्रानंदन पंत
जन पर्व मकर संक्रांति आज उमड़ा नहान को जन समाज गंगा तट पर सब छोड़ काज।
नारी नर कई कोस पैदल आरहे चले लो, दल के दल, गंगा दर्शन को पुण्योज्वल!