ईश्वर की दी धरोहर हम जला रहे हैं/मनोज कुमार
ईश्वर की दी हुई धरोहर हम जला रहे हैं
लगा के आग पर्यावरण दूषित कर रहे हैं
काटे जा रहे हैं पेड़ जंगलों के,
सुखा के इन्सान खुश हो रहा है
आते – जाते मौसम बिगाड़ रहा है
हरी- भरी भूमि में निरंतर रसायन मिला रहा है
अपने ही उपजाऊ भूमि को बंजर कर रहा है
धरती को आग लगा रहा है
जीवन बुझा रहा है।
हवाओं का रुख न रहा,
मेघ, बरखा सब बदल रहा
फसलों को अब कीट पतंगे चुनते हैं,
उसपर रेशा- रेशा बुनते हैं
अब खो गए सब वन सारे,
जब धरती पे फूटे अँगारे
अब चारों तरफ है गर्मी,
रिमझिम कहाँ है बूँदों में?
- मनोज कुमार गोण्डा उत्तर प्रदेश