Tag: मुहावरों पर कविता – उपमेंद्र सक्सेना

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    उपमेंद्र सक्सेना – मुहावरों पर कविता

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    नैतिकता का ओढ़ लबादा, लोग यहाँ तिलमिला रहे हैं
    और ऊँट के मुँह में जीरा, जाने कब से खिला रहे हैं।

    आज कागजी घोड़े दौड़े, कागज का वे पेट भरेंगे
    जो लिख दें वे वही ठीक है, उसे सत्य सब सिद्ध करेंगे
    चोर -चोर मौसेरे भाई, नहीं किसी से यहाँ डरेंगे
    और माफिया के चंगुल में, जाने कितने लोग मरेंगे

    हड़प लिया भूखे का भोजन, अब देखो खिलखिला रहे हैं
    और ऊँट के मुँह में जीरा, जाने कब से खिला रहे हैं।

    मानव- सेवा के बल पर जो, नाम खूब अपना चमकाएँ
    जनहित में जो आए पैसा, उसको वे खुद ही खा जाएँ
    सरकारी सुख-सुविधाओं का, वे तो इतना लाभ उठाएँ
    उनके आगे कुछ अधिकारी, भी अब नतमस्तक हो जाएँ

    आज दूसरों की दौलत वे, अपने घर में मिला रहे हैं
    और ऊँट के मुँह में जीरा, जाने कब से खिला रहे हैं।

    फँसकर यहाँ योजनाओं में, निर्धन हो जाते घनचक्कर
    लाभ न उनको मिलता कोई, लोग निकलते उनसे बचकर
    दफ्तर में दुत्कारा जाता, हार गए वे आखिर थककर
    कौन दबंगों से ले पाए, बोलो आज यहाँ पर टक्कर

    लोग दिलासा देते उनको, भूखे जो बिलबिला रहे हैं
    और ऊँट के मुँह में जीरा, जाने कब से खिला रहे हैं।

    आज आस्तीनों में छिपकर, कितने सारे नाग पले हैं
    देख न सकते यहाँ तरक्की,अपनों से वे खूब जले हैं
    जिसने उनको अपना समझा, वे उसको ही लूट चले हैं
    अंदर से काले मन वाले, बनते सबके आज भले हैं

    मीठी बातों का रस सबको, आज यहाँ पर पिला रहे हैं
    और ऊँट के मुँह में जीरा, जाने कब से खिला रहे हैं।

    रचनाकार ✍️उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
    ‘कुमुद- निवास’
    बरेली (उत्तर प्रदेश)