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  • राम प्रसाद बिस्मिल की लिखी कविताएं

    राम प्रसाद बिस्मिल की लिखी कविताएं

    रामप्रसाद बिस्मिल एक क्रान्तिकारी थे जिन्होंने मैनपुरी और काकोरी जैसे कांड में शामिल होकर ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध बिगुल फूंका था। वह एक स्वतंत्रता संग्रामी होने के साथ-साथ एक कवि भी थे और राम, अज्ञात व बिस्मिल के तख़ल्लुस से लिखते थे, उनके लेखन को सर्वाधिक लोकप्रियता बिस्मिल के नाम से मिली थी। पेश हैं शहीद क्रान्तिकारी राम प्रसाद बिस्मिल की लिखी कविताएं जिनमें उनकी राष्ट्र-प्रेम की भावनाएं भी झलकती हैं।

    राम प्रसाद बिस्मिल की लिखी कविताएं

    राम प्रसाद बिस्मिल की लिखी कविताएं

    न चाहूँ मान दुनिया में/ राम प्रसाद बिस्मिल

    न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना
    मुझे वर दे यही माता रहूँ भारत पे दीवाना

    करुँ मैं कौम की सेवा पडे़ चाहे करोड़ों दुख
    अगर फ़िर जन्म लूँ आकर तो भारत में ही हो आना 

    लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखुँ हिन्दी
    हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहनना, ओढना खाना हिंदी

    भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की
    स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना

    लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन
    करुँ मैं प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना

    नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से “बिस्मिल” तुम
    उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना

    तराना-ए-बिस्मिल

    बला से हमको लटकाए अगर सरकार फांसी से,
    लटकते आए अक्सर पैकरे-ईसार फांसी से।

    लबे-दम भी न खोली ज़ालिमों ने हथकड़ी मेरी,
    तमन्ना थी कि करता मैं लिपटकर प्यार फांसी से।

    खुली है मुझको लेने के लिए आग़ोशे आज़ादी,
    ख़ुशी है, हो गया महबूब का दीदार फांसी से।

    कभी ओ बेख़बर तहरीके़-आज़ादी भी रुकती है?
    बढ़ा करती है उसकी तेज़ी-ए-रफ़्तार फांसी से।

    यहां तक सरफ़रोशाने-वतन बढ़ जाएंगे क़ातिल,
    कि लटकाने पड़ेंगे नित मुझे दो-चार फांसी
    ऐ मातृभूमि तेरी जय हो, सदा विजय हो
    ऐ मातृभूमि तेरी जय हो, सदा विजय हो
    प्रत्येक भक्त तेरा, सुख-शांति-कान्तिमय हो

    अज्ञान की निशा में, दुख से भरी दिशा में
    संसार के हृदय में तेरी प्रभा उदय हो

    तेरा प्रकोप सारे जग का महाप्रलय हो
    तेरी प्रसन्नता ही आनन्द का विषय हो

    वह भक्ति दे कि ‘बिस्मिल’ सुख में तुझे न भूले
    वह शक्ति दे कि दुःख में कायर न यह हृदय हो

    गुलामी मिटा दो

    दुनिया से गुलामी का मैं नाम मिटा दूंगा,
    एक बार ज़माने को आज़ाद बना दूंगा।

    बेचारे ग़रीबों से नफ़रत है जिन्हें, एक दिन,
    मैं उनकी अमरी को मिट्टी में मिला दूंगा।

    यह फ़ज़ले-इलाही से आया है ज़माना वह,
    दुनिया की दग़ाबाज़ी दुनिया से उठा दूंगा।

    ऐ प्यारे ग़रीबो! घबराओ नहीं दिल में,
    हक़ तुमको तुम्हारे, मैं दो दिन में दिला दूंगा।

    बंदे हैं ख़ुदा के सब, हम सब ही बराबर हैं,
    ज़र और मुफ़लिसी का झगड़ा ही मिटा दूंगा।

    जो लोग ग़रीबों पर करते हैं सितम नाहक़,
    गर दम है मेरा क़ायम, गिन-गिन के सज़ा दूंगा।

    हिम्मत को ज़रा बांधो, डरते हो ग़रीबों क्यों?
    शैतानी क़िले में अब मैं आग लगा दूंगा।

    ऐ ‘सरयू’ यक़ीं रखना, है मेरा सुख़न सच्चा,
    कहता हूं, जुबां से जो, अब करके दिखा दूंगा।

    चर्चा अपने क़त्ल का अब दुश्मनों के दिल में है

    चर्चा अपने क़त्ल का अब दुश्मनों के दिल में है,
    देखना है ये तमाशा कौन सी मंजिल में है ?

    कौम पर कुर्बान होना सीख लो ऐ हिन्दियो 
    ज़िन्दगी का राज़े-मुज्मिर खंजरे-क़ातिल में है 

    साहिले-मक़सूद पर ले चल खुदारा नाखुदा 
    आज हिन्दुस्तान की कश्ती बड़ी मुश्किल में है 

    दूर हो अब हिन्द से तारीकि-ए-बुग्जो-हसद 
    अब यही हसरत यही अरमाँ हमारे दिल में है 

    बामे-रफअत पर चढ़ा दो देश पर होकर फना 
    ‘बिस्मिल’ अब इतनी हविश बाकी हमारे दिल में है