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  • विदाई गीत /कविता

    तुम रुक न सको

    विदाई गीत /कविता

    सौजन्य-अरुणा श्रीमाली

    तुम रुक न सको तो जाओ, तुम जाओ..

    तुम रुक न सको तो जाओ, तुम जाओ…

    पढ़-लिख कर विश्राम न करना

    कर्म-क्षेत्र में आगे बढ़ना ।

    यही कामना आज हमारी,

    तुम्हें इसे है पूरी करना ।

    अपना भविष्य बनाओ, तुम जाओ ॥

    विदा कर रहे आज तुम्हें हम,

    हृदय हमारा भर-भर आता

    आँखें भी तो नम हैं तुम्हारी,

    उनसे टपका अश्रु बताता,

    दिल को तुम समझाओ, तुम जाओ ॥

    त अमिट स्त्रोत प्रेरणा के तुम जो

    छोड़ चले हो पीछे अपने।

    हम इन पर ही सदा चलेंगे,

    नहीं असत्य होंगे ये सपने

    मत हताश हो जाओ, तुम जाओ ॥

    सच्चाई किसे कब कहाँ

    सौजन्य-अरुणा श्रीमाली

    सच्चाई किसे कब कहाँ याद आई।

    मिलन में छुपी है विदा की जुदाई ।।

    तनों की जुदाई विदाई नहीं है,

    हृदय की जुदाई विदाई सही है।

    फिर भी न जाने क्यूं आती रुलाई ।

    नदी-नाव का योग आया गंवाया।

    गया हाथ से कब कहाँ जान पाया।

    अचानक विदा की घड़ी आज आई ॥

    कहाँ जान पाये कि पाथेय क्या दे ?

    उपादेयता को उपादेय क्या दे ?

    सिवा आँसुओं के कहाँ भेंट पाई ॥

    न सोचा कभी था

    ० सौजन्य-दत्ता क्षीरसागर

    न सोचा कभी था, इस दिन के आने का ।

    गुरुवर! आपकी विदाई में समारोह मनाने का ।।

    बदले सात महीनों में औ’ महीने दिनों में ।

    विश्वास नहीं होता, कभी इस क्षण के आने का ।

    आपके नेह-सागर में, हिलोरें लेते रहे हम

    कैसे सह सकेंगे, किनारे कर दिये जाने का ।।

    ज्ञान मान आन के पथ पर चलने का ।

    उपदेश सत्य के साथ, सदा हमारे साथ रहने का ।

    खबर सुन विदा की, प्राणों के छटपटाने का ।

    बिना आपके, संसार में दिन गुजारने का ।।

    भले ही आप होंगे विदा, स्कूल इस भवन से,

    पर भूल के भी मत सोचना, मन से विदा होने का ।।

    कैसे विदा करें हम

    कैसे विदा करें हम, मन मानता नहीं है।

    लेकिन करें भी क्या अब, वश भी तो कुछ नहीं है ।

    कैसे विदा करें हम….

    धन्य भाग्य थे हमारे, जिस दिन पधारे थे तुम ।

    तकदीर अब हमारी, रूठी ही जा रही है ।

    कैसे विदा करें हम….

    क्यों छोड़ जा रहे हो, मझधार में बिलखते ।

    करुणा के सिन्धु ऐसा, अनुचित उचित नहीं है ।

    कैसे विदा करें हम….

    गुरु दिव्य ज्ञानमय तुम, अन्धेरे दिल के दीपक ।

    अज्ञान में भटकते, क्यों छोड़ जा रहे हो ।।

    कैसे विदा करें हम….

    कैसा समय सुहाना छाया था सब के दिल में।

    लेकिन ये घड़ियाँ, निर्दय बीती क्यों जा रही है ।।

    कैसे विदा करें हम….

    आनन्द के कल्प तरुवर, फुला फला हमारे ।

    गुरु आपके बिना पल, वर्षों समान ही है ।

    कैसे विदा करें हम….