विधवा पर कविता
मैंने अपनी स्वरचित कविता “विधवाएं” कुछ समय पहले ही लिखी है ,और इसे लिखने के लिए प्रेरणा भी मुझे यथार्थ ही मिली। कि हम चाहे कितनी ही तरक्की क्यूं न कर ले मगर हमारी सोच औरतों को लेकर अब भी संकीर्ण ही है।
मैंने अपनी स्वरचित कविता “विधवाएं” कुछ समय पहले ही लिखी है ,और इसे लिखने के लिए प्रेरणा भी मुझे यथार्थ ही मिली। कि हम चाहे कितनी ही तरक्की क्यूं न कर ले मगर हमारी सोच औरतों को लेकर अब भी संकीर्ण ही है।