Tag: शरद पूर्णिमा पर कविता

  • शरद पूर्णिमा / स्वपन बोस बेगाना

    शरद पूर्णिमा / स्वपन बोस बेगाना


    इस कविता में शरद पूर्णिमा की चांदनी रात को अद्वितीय सौंदर्य और गहरे भावनात्मक जुड़ाव से जोड़ा गया है। चंद्रमा की रोशनी प्रियसी के मिलन की प्रतीक्षा को दर्शाती है, जबकि मानव जीवन में भगवान से दूर होने की पीड़ा और अनिश्चितता की झलक दिखाई देती है। कविता में नायक शरद पूर्णिमा की रात को अपने अंदर की भावनाओं और प्रियसी की याद में गहरे दर्द को व्यक्त करता है।

    शरद पूर्णिमा

    चांदनी रात शरद पूर्णिमा पुरे शबाब पर है।
    जीवन तो चल रही है यु ही आजकल लोग हों रहें हैं चांद, तारों से दूर जिंदगी जीए जा रहें हैं जैसे कोई हिसाब पर है।

    शरद की पुर्णिमा तो बरस रही है।
    कृष्ण से मिलने को राधा तरस रही है।
    अब न जाने रास क्यों नहीं हो रहा है। दुःख से तड़प रहा इंसान,मानव भगवान से दूर कहीं खो रहा है। इसलिए इंसान रो रहा है।

    शरद पूर्णिमा की चांद की खुबसूरती जैसे प्रिया मिलन को सजी है।
    गहरे आकाश के माथे पर बसी कोई दुल्हन की बिंदी है।

    मंद मंद हवा बह रही है रात शीतल है। पेड़ पौधों के पत्ते डोल रहें हैं।
    तारों की बारात लेकर शरद की पुर्णिमा की चंद्रमा सुंदर सजी है।

    शरद पूर्णिमा में मैं बेगाना कवि प्रियसी की याद में रो रहा हूं।
    कब वो देंगी दर्शन मुझे बस यही चांद को देख सोच रहा हूं।

    वादियों में आज अजीब सा नशा है।
    क्यों की इस चांदनी रात में उसकी याद दिल में बसा है।
    जनम जनम से उसकी ही तलाश है।
    इस शरद पूर्णिमा में उस प्रभु से मिलन की आस है।

    स्वपन बोस,, बेगाना,,
    9340433481

  • शरद पूर्णिमा / डॉ. मनोरमा चन्द्रा ‘रमा’

    शरद पूर्णिमा / डॉ. मनोरमा चन्द्रा ‘रमा’

    शरद पूर्णिमा हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है, जिसे भारत के विभिन्न भागों में बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। शरद पूर्णिमा अश्विन महीने  की पूर्णिमा को मनाई जाती है और इसे विशेष रूप से चंद्रमा से जुड़े धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है।


                  शरद पूर्णिमा

    शरद पूर्णिमा खास, चलो हम पर्व मनाएँ।
    करके पूजन ध्यान, विष्णु श्री वंदन गाएँ।।
    मिले कृपा जग सार, संग में यश को पाएँ।
    पूरे हों सब काज, भक्ति में जन रम जाएँ।।

    चंद्र दरस शुभ रात, अमृत की वर्षा करते।
    सुख समृद्धि सौगात, तृप्ति दे दामन भरते।।
    शीतलता की छाँव, सुखद अति उत्तम प्यारा।
    नभ में शोभित चंद्र, कांति दे जग को सारा।।

    दान करें सब आज, मिले फल अनुपम भारी।
    जीवन हो खुशहाल, मोक्ष के बन अधिकारी।।
    पुण्य कर्म को धार, दिवस का मान बढ़ाएँ।
    काम क्रोध को त्याग, हृदय को शुद्ध बनाएँ।।

    करें दीप का दान, नदी के तट पर जाएँ।
    करके पावन स्नान, पुण्य शुभ फल को पाएँ।।
    शरद पूर्णिमा पर्व, खीर का भोग लगाएँ।
    मिले कृपा भगवंत, धर्म का पथ अपनाएँ।।

                      डॉ. मनोरमा चन्द्रा ‘रमा’
                                *रायपुर (छ.ग.)*

  • शरद पूर्णिमा पर कुंडलिया छंद

    शरद पूर्णिमा पर कुंडलिया छंद

    1—-

    उज्ज्वल- उज्ज्वल है धरा,चंद्र -किरण बरसात ।

    चाँद गगन से झाँकता ,रूप मनोहर गात।।

    रूप मनोहर गात ,रजत सम बहती धारा।

    लिए शरद सौगात ,चंद्र का रूप निखारा।।

    कहे सुधा सुन मीत , प्रीत है मन का प्राँजल। 

    सजे पुनों की रात ,धरा है उज्ज्वल उज्ज्वल।।

    2—

    छम-छम बजती पायलें , हुई चाँदनी रात।।

    मधुवन मधुरव गूँजते ,मधुर हदय की बात।।

    मधुर हदय की बात ,वंशिका गीत सुनाए।

    मचल रहे जजबात ,प्रीत परवान चढ़ाए।।

    कहे सुधा सुन मीत ,प्रेम बरसे अति पावन। 

    नाचे राधेश्याम , बजे  पायल हैं छमछम।।

    3—

    ओढ़ी  वसुधा देखिए ,दुग्ध चुनरिया आज।

    चमक रहा नभ चाँद है , पहने चाँदी ताज।।

    पहने चाँदी ताज , शीत की है अगवानी।

    झरता मधुरस गात ,प्रीत की  रीत निभानी।

    कहे सुधा सुन मीत , धरा है लगे नवोढ़ी।

    रजत- रजत आभास ,च॔द्र- किरणें है ओढ़ी।।

    सुधा शर्मा,राजिम छत्तीसगढ