Tag: 28th जुलाई विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पर हिंदी कविता

28th जुलाई विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस
हर साल 28 जुलाई को दुनिया भर में विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस मनाया जाता है। विश्व संरक्षण दिवस हर साल प्राकृतिक संसाधनों का संक्षरण करने के लिए सर्वोत्तम प्रयासों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है। पृथ्वी हमें सीमित मात्रा में ऐसे चीजों की आपूर्ति करती है, जिन पर हम सभी पूरी तरह निर्भर हैं जैसे पानी, हवा, मिट्टी और पेड़-पौधे।

  • आक्सीजन के लिए जंग- शिवेन्द्र यादव

    आक्सीजन के लिए जंग- शिवेन्द्र यादव

    आक्सीजन के लिए जंग

    कोरोना महामारी के चलते देश में अधिकतर मौतें आक्सीजन ना मिलने के कारण हुई हैं।लेकिन मनुष्य जिस गति से अपने निजी स्वार्थ के लिए निरंतर वृक्षो का दोहन कर रहा है ऐसा ना हो कि आने वाले वर्षों में हर व्यक्ति को आक्सीजन के लिए जंग लड़नी पड़े।

    आक्सीजन के लिए जंग- शिवेन्द्र यादव

    वन नीति के अनुसार देश का 33.3 प्रतिशत भूभाग वन अच्छादित होना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य की देश के 19.5 प्रतिशत भाग पर ही वन है।यही नहीं वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट 2020 के अनुसार दुनिया के 30 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों मे 22 भारत में हैं। ये आकड़े भविष्य के भयावह स्थिति की ओर इशारा कर रहे हैं।

    अभी हाल ही के दिनों मे वायु प्रदूषण से पूरी दिल्ली मे धुंध जैसे हालात उत्पन्न हो गए थे और हवा की शुद्धता मे गिरावट देखने को मिली थी।ये परिवर्तन मनुष्य द्वारा प्रकृति के साथ खिलवाड़ का प्रत्यक्ष उद्धाहरण है तथा हमे सतर्क कर रहे हैं।

    अकेले भारत में हर साल 16 लाख से अधिक लोगों को वायु प्रदूषण के कारण अपनी जान गवानी पड़ती है। आज निरंतर वनों की कमी से जहाँ मानसून मे देरी हो रही है वही औसत से कम वर्षा से देश के विभिन्न हिस्सों को सूखे की मार झेलनी पड़ती है।जहाँ ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन एवम ओजोन परत में छिद्र के कारण अनेक वायुमंडलीय परिवर्तन देखने को मिल रहे है वही पृथ्वी के तापमान में निरंतर वृद्धि हो रही है फलस्वरूप ग्लेशियर पिघल रहे हैं । जिसके कारण समुद्र का जल स्तर बढ़ने से बाढ़ जैसी भयानक तबाही आ सकती।

    अतः पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सरकार तथा हमारा कर्तव्य बनता है की अधिक से अधिक वृक्ष लगाकर आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ एवम स्वास्थ्य भविष्य दें।


    शिवेन्द्र यादव- उत्तर प्रदेश

  • बस एक पेड़ ही तो काटा है -नदीम सिद्दीकी

    बस एक पेड़ ही तो काटा है -नदीम सिद्दीकी

    बस एक पेड़ ही तो काटा है

    बस एक पेड़ ही तो काटा है -नदीम सिद्दीकी


    बस एक पेड़ ही तो उखाड़ा है साहब!
    अगर ऐसा न हो तो बस्तियां कैसे बसेगी?
    प्रगति,तरक्की,ख़ुशयाली कैसे आएगी?


    हमें आगे चलना है,पीछे नहीं रहना है,
    दुनिया के साथ चलकर आगे बढ़ना है।
    आगे बढ़ने की रफ्तार सही नहीं जाती,
    तुमसे इंसान की तरक्की देखी नहीं जाती।
    ये कैसी तरक्की है साहब?


    तुमने कभी पेड़ से भी पूछा है तनिक,
    कभी उसके दर्द,उसके आँसुओं को समझा।
    वो कितना ख्याल रखता है हमारे सबका,
    प्रकृति का संतुलन,हमारा जीवन दाता।


    इंसान और प्रकृति का अनूठा संगम है वो,
    बारिश को बुलाना,धरा को हरीभरी करना।
    प्रदूषण को दूर करना,मानव का पेट भरना,
    कितनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करता है।


    एक पेड़ कितने जीवन को बचाता है,
    कितनो को वो प्राण वायु देता है।
    क्या ये तरक्की नहीं,क्या ये प्रगति नहीं मानुष,
    पेड़ पौधे नहीं होंगे,प्रकृति का विनाश होगा।


    इसके बिना इंसान का अस्तित्व खतरे में होगा,
    इसके बिना प्रकृति समूल नष्ट हो जाएगी।
    क्या मानव ऐसी तरक्की करना चाहता है?
    जहां उसका सब कुछ दांव पर लगा हो,
    उसका अस्तित्व ही बचने वाला ना हो।
    कैसी तरक्की?
    बस एक पेड़ ही तो काटा है!


    नदीम सिद्दीकी, राजस्थान

  • प्रकृति संरक्षण मंत्र-अमिता गुप्ता

    प्रकृति संरक्षण मंत्र-अमिता गुप्ता

    प्रकृति संरक्षण मंत्र-अमिता गुप्ता

    प्रकृति संरक्षण मंत्र-अमिता गुप्ता

    प्रकृति हमारा पोषण करती,
    देकर सुंदर सानिध्य,
    जीवन पथ सुगम बनाती है,
    जीव-जंतु जगत की रक्षा को,
    निज सर्वस्व लुटाती है।

    आधुनिकीकरण के दौर में,
    अंधाधुंध कटाई कर,
    जंगलों का दोहन क्षरण किया,
    खग, विहंग, पशु कीटों का,
    घर-आंगन आश्रय छीन लिया।

    प्रदूषण स्तर हुआ अनियंत्रित,
    प्लास्टिक,पॉलिथिन का उपयोग बढ़ा,
    पोखर,तड़ाग,नद, झीलों का,
    मृदु नीर मानव ने अशुद्ध किया।

    रफ्ता-रफ्ता हरियाली क्षीण हुई,
    प्रकृति असंतुलन में आयी,
    कहीं पड़ा सूखा, कहीं अतिवृष्टि,
    कहीं सांसों को बचाने की मारामारी छाई।

    आओ सब मिल करें एक प्रण,
    प्रकृति संरक्षण मंत्र अपनाना है,
    जागरूक करें अंतर्मन को,
    वसुंधरा को हरा-भरा बनाना है।

    स्वरचित मौलिक रचना
    ✍️-अमिता गुप्ता
    कानपुर,उत्तर प्रदेश

  • हमें जमीं से मत उखाड़ो-अदित्य मिश्रा

    हमें जमीं से मत उखाड़ो-अदित्य मिश्रा

    हमें जमीं से मत उखाड़ो

    हमें जमीं से मत उखाड़ो-अदित्य मिश्रा

    रो-रोकर पुकार रहा हूं हमें जमीं से मत उखाड़ो।
    रक्तस्राव से भीग गया हूं मैं कुल्हाड़ी अब मत मारो।

    आसमां के बादल से पूछो मुझको कैसे पाला है।
    हर मौसम में सींचा हमको मिट्टी-करकट झाड़ा है।

    उन मंद हवाओं से पूछो जो झूला हमें झुलाया है।
    पल-पल मेरा ख्याल रखा है अंकुर तभी उगाया है।

    तुम सूखे इस उपवन में पेड़ों का एक बाग लगा लो।
    रो-रोकर पुकार रहा हूं हमें जमीं से मत उखाड़ो।

    इस धरा की सुंदर छाया हम पेड़ों से बनी हुई है।
    मधुर-मधुर ये मंद हवाएं, अमृत बन के चली हुई हैं।

    हमीं से नाता है जीवों का जो धरा पर आएंगे।
    हमीं से रिश्ता है जन-जन का जो इस धरा से जाएंगे।

    शाखाएं आंधी-तूफानों में टूटीं ठूंठ आंख में अब मत डालो।
    रो-रोकर पुकार रहा हूं हमें जमीं से मत उखाड़ो।

    हमीं कराते सब प्राणी को अमृत का रसपान।
    हमीं से बनती कितनी औषधि नई पनपती जान।

    कितने फल-फूल हम देते फिर भी अनजान बने हो।
    लिए कुल्हाड़ी ताक रहे हो उत्तर दो क्यों बेजान खड़े हो।

    हमीं से सुंदर जीवन मिलता बुरी नजर मुझपे मत डालो।
    रो-रोकर पुकार रहा हूं हमें जमीं से मत उखाड़ो।

    अगर जमीं पर नहीं रहे हम जीना दूभर हो जाएगा।
    त्राहि-त्राहि जन-जन में होगी हाहाकार भी मच जाएगा।

    तब पछताओगे तुम बंदे हमने इन्हें बिगाड़ा है।
    हमीं से घर-घर सब मिलता है जो खड़ा हुआ किवाड़ा है।

    गली-गली में पेड़ लगाओ हर प्राणी में आस जगा दो।
    रो-रोकर पुकार रहा हूं हमें जमीं से मत उखाड़ो।

    अदित्य मिश्रा

    दक्षिणी दिल्ली, दिल्ली
    9140628994

  • मत करो प्रकृति से खिलवाड़-दीप्ता नीमा

    मत करो प्रकृति से खिलवाड़-दीप्ता नीमा

    मत करो प्रकृति से खिलवाड़

    मत करो प्रकृति से खिलवाड़-दीप्ता नीमा
    हसदेव जंगल

    मत काटो तुम ये पहाड़,
    मत बनाओ धरती को बीहाड़।
    मत करो प्रकृति से खिलवाड़,
    मत करो नियति से बिगाड़।।1।।


    जब अपने पर ये आएगी,
    त्राहि-त्राहि मच जाएगी।
    कुछ सूझ समझ न आएगी,
    ऐसी विपदाएं आएंगी ।।2।।


    भूस्खलन और बाढ़ का कहर,
    भटकोगे तुम शहर-शहर।
    उठे रोम-रोम भय से सिहर,
    तुम जागोगे दिन-रात पहर।।3।।


    प्रकृति में बांटो तुम प्यार,
    और लगाओ पेड़ हजार।
    समझो इनको एक परिवार,
    आगे आएं हर नर और नार।।4।।


    पर्यावरण असंतुलित न हो पाए,
    हर लब यही गीत गाए।
    धरती का स्वर्ग यही है,
    पर्यावरण संतुलित यदि है।।5।।


    निर्मल नदिया कलकल बहता पानी,
    कहता है यही मीठी जुबानी।
    धरती का स्वर्ग यही है,
    पर्यावरण संतुलित यदि है।।6।।


    ।।।। दीप्ता नीमा ।।।।