सबसे ज्यादा मेरी माता
o आचार्य मायाराम ‘पतंग’
सबसे ज्यादा मेरी माता, लगती मुझको प्यारी है।
माता के पावन चरणों, जग सारा बलिहारी है ॥
माँ ने सबको जन्म दिया है अपना दूध पिलाया है।
गीले में खुद सोई माँ, सूखे में हमें सुलाया है ॥
भूख, प्यास सब सही स्वयं पर दुःखी नहीं हमको देखा ।
मेरी छोटी सी पीड़ा से फैली चिंता की रेखा ।।
मैं ही नहीं बहन या भाई पूज्य पिता दादा-दादी ।
सबकी चिंता करती अम्मा, खोकर अपनी आज़ादी ।।
सबको भोजन करा देती आप बाद में खाती है।
बड़े सवेरे सबसे पहले बिस्तर से उठ जाती है।
जो भी चीज न पाए घर में पढ़ने, लिखने, खाने की।
अम्मा को आवाज लगाते हम सारे अनजाने ही ।।
साज, सफाई और रसोई, कपड़ों का धोना सीना।
माता से सीखा है हमने सेवा मेहनत कर जीना ॥
ऐसी माता के चरणों में अपना शीश झुकाते हैं।
ईश्वर का साकार रूप हम माताजी में पाते हैं ।
हम बलवानों की जननी है।
० सुवर्णसिंह वर्मा ‘आनंद’
हम बलवानों की जननी है, तुमको बलवान् बना देंगी।
हम अबला हैं या सबला हैं, तुझको यह ध्यान दिला देंगी ।
हम देशभक्ति पर मरती हैं, न्योछावर तन-मन करती हैं,
हम भारत के दुःख हरती हैं, होकर कुरबान दिखा देंगी।
हम मद्य प्रचार मिटा देंगी, परदेशी वस्त्र हटा देंगी,
हम अपना शीश कटा देंगी, पर तुम्हें सुराज दिला देंगी।
हम दुर्गा-चंडी काली हैं, आजादी की मतवाली हैं,
हम नागिन डसनेवाली हैं, दुश्मन का दिल दहला देंगी ।
हम शांत चित्त हैं, ज्ञानी हैं, हम ही झाँसी की रानी हैं,
यह अटल प्रतिज्ञा ठानी है, भारत स्वाधीन करा देंगी।