जब भी कभी हम खुले आसमाँ बैठते है/दीपक राज़
जब भी कभी हम खुले आसमाँ बैठते है /दीपक राज़ जब भी कभी हम खुले आसमाँ बैठते हैज़मीं से भी होती है ताल्लुक़ात जहाँ बैठते है ये जो फूल खिल रहे है ये जो भौंरे उड़ते हैंअच्छा लगता है जब अपनो से अपने जुड़ते हैं पत्ते झर झर करते हैं हवाए सायं सायं चलती हैमदहोस … Read more